खुद को समझाने बैठा हूँ।

खुद को समझाने बैठा हूँ।   

भूली बिसरी याद सुहानी
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
उन यादों के झुरमुट में मैं
फिर सुस्ताने बैठा हूँ।
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

शब्द शब्द भावों में बहकर
अनुच्छेदों में गुम हो गए
अल्प कहीं पर पूर्ण विराम
संकेतों में गुम हो गए।
अनुच्छेदों के संकेतों को
फिर अजमाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

कितने पन्ने व्यर्थ हो गए
लिखे कहीं कहिं भूल गए
लिखे कहीं जो कुछ पन्नों पर
जाने कब वो शूल हो गए।
शूल चुभे पन्नों से दिल पर
उन को बहलाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

कितनी बातें कही अनकही
सुने कहीं, पर कहे नहीं
कितने मन मे दबे रह गए
कुछ भाव बुने पर गुहे नहीं।
कही अनकही उन बातों को
खुद को समझाने बैठा हूँ
उन भूली बिसरी यादों को
फिर आज बुलाने बैठा हूँ।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       20जनवरी, 2021

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