जीवन अविरल बहता रहता |
जीवन अविरल बहता रहता
कभी सुनता कभी कुछ कहता
कितनी बातें इसके दिल में
बिखर सिमट कर चलता रहता |
कभी पाने की जिद कहीं की
और कभी दाता बन बैठा
कभि खोया अपनी ही धुन में
और कभी याचक बन बैठा |
कितने स्वप्न तराशे इसने
खोकर आँखों की नींदें
कितने दांव लगाए इसने
अपनी आँखों को मींचें |
जितने शब्द पिरोये इसने
उतना इसको मान मिला
चली लेखनी जब भी इसकी
इसको बस सम्मान मिला |
इसकी परछाईं ने कितने
आकारों को गढ़ा यहाँ
भावों को औ मंतव्यों को
सँभल सँभल कर पढा यहाँ|
आभासों औ अहसासों में
परिवर्तन ये पलता रहता
जीवन अविरल बहता रहता
जीवन अविरल बहता रहता ||
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
23फरवरी, 2021
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