भाव तड़पते देखा है।

भाव तड़पते देखा है।    

जब जब मैंने बस्ती में
रात सिसकते देखा है
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।

ऊँचे ऊँचे पैमानों की
बातों की कोई चाह नहीं
घाव मिले हैं जिन लोगों से
मलहम की उनसे चाह नहीं।

मैंने भारत में भारत की
जब आह निकलते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल मे
इक भाव तड़पते देखा है।।

निज स्वार्थ की बेदी पर जब
न्यायों का अपमान बड़ा हो
जनतन की इच्छा के बदले
सत्ता का अभियान बड़ा हो।

ऐसे अभियानों को हमने
जब राह भटकते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।।

कभी सुना था हमने भी
धन, दौलत औ रिश्ते-नाते 
नैतिकता के प्रतिमानों पर
इक दूजे को राह दिखाते।

अपने ही घर में जब हमने
ये भाव बिखरते देखा है।
सच कहता हूँ इस दिल में
इक भाव तड़पते देखा है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
      16जनवरी, 2021



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