मौन अब खोल दो।
औ कभी तुम कुछ बोल दो
मौन क्यूँ बैठे हो यहॉं पर
दिल की गिरह को खोल दो।।
जानता हूँ दिल में दबी हैं
तिरे भावनाएँ प्यार की
और कितनी चाहतें हैं
इस प्यार के संसार की।
आज दिल में जो दबी है
सभी भावनाएँ बोल दो।
मौन क्यूँ बैठे हो यहाँ पर
दिल की गिरह को खोल दो।।
क्या याद अब तुमको नहीं
मुझसे था क्या क्या कहा
साथ मिलकर जब चले थे
हमने था क्या क्या सहा।
भूल तुम कैसे गए सब
कुछ तो कहो कुछ बोल दो।
मौन क्यूँ बैठे हो यहाँ पर
दिल की गिरह को खोल दो।।
बाद अपने प्रेम की बस
रह जायेंगी निशानियाँ
गीत अपने प्रीत की
गूंजेंगी बन कहानियाँ।
फिर हमारे गीत में तुम
प्रीत के रस घोल दो।
मौन क्यूँ बैठे हो यहाँ पर
दिल की गिरह को खोल दो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02मार्च, 2021
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