आघात।
इक एक कर के गुजर गए
आशा की जो किरण दिखी
कुछ अवसादों में बिखर गए।
शांति पूर्ण बैठे हैं कहकर
कैसा ये आघात किया
संविधान की आत्मा पर ही
आज कुठाराघात किया।
मुँह में राम बगल में छूरी
भावों को चरितार्थ किया
शांति म्यान में रख तलवारें
धोखे से आघात किया।
शांति पूर्ण आंदोलन में
हिंसा का स्थान नहीं होता
दंगा करने वालों का
कभी संविधान नहीं होता।
विघटनकारी ताकत है जो
विनयशीलता कब समझी है
जिनके मन में भेद बड़े हों
पुण्यशीलता कब समझी है।
राष्ट्रधर्म बस यही सिखाता
राष्ट्रप्रमुख औ राष्टप्रथम है
जो जैसी भाषा समझे
उससे वैसा ही उत्तम है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27जनवरी, 2021
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