उम्मीद
व्यर्थ इसे ना तुम करना
उपवन है ये मधुर मनोहर
एहसासों से सिंचित करना।
इक राह अकेली चली दूर तक
अगणित मोड़ों तक है जाना
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना ।
जाने कितने मोड़ मिलेंगे
इन राहों पर आते जाते
मोड़ मोड़ से जुड़ते जुड़ते
मीलों तक हैं राह दिखाते।
इक मोड़ कहीं छूटेगी जब
दूजे तक तब है जाना ।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।
सूनी सूनी राहें माना
सूने सब रिश्ते नाते
सूनी इच्छाओं की माला
मन में कितने भाव जगाते।
सूनी यादों का संचय ले
खुद को फिर से है पाना।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।
इक छोटी सी कहीं रोशनी
जब राहों से मिल जाती है
बीती इच्छाओं के कितने
स्वप्न पुनः वो दे जाती है।
उन सपनों की देहरी तक
हमको तो है आना जाना।
कुछ अनजानी कुछ पहचानी
मीलों तक है चलते जाना।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19जनवरी, 2021
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