पुरुषार्थ अनुसरण करो।
धूप भी अलसा रही
ओस की बूंदें धरा पर
मंद यूँ मुस्का रही।
रात का अंतिम पहर
औ भोर द्वारे पर खड़ी
रात की गुमनामियाँ भी
मुक्त होने को पड़ीं।
खग, विहग पंछी सभी
गीत गाने को चले
रात दिन की डोर देखो
दूर क्षितिज पर मिले।
दिल चाहता खुलकर मिलूँ
पर शीत ऋतु झुलसा रही
बादलों की ओट में
धूप भी अलसा रही।
त्याग कर आलस्य सारे
स्फूर्ति का वरण करो
तोड़ कर बंधन सभी
पुरुषार्थ अनुसरण करो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02दिसंबर, 2021
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