काशी।

काशी।  

जग के ठाठ भूल सारे
मन काशी हो जाता है।।

कष्ट सभी मिट जाते हैं
खुद से खुद मिल जाते हैं
लगा भभूत माथ पर अपने
देवों का दर्शन पाते हैं।

अल्हड़ गंगा की धारा में
वक्त यहाँ सिमटा जाता है।
जग के ठाठ भूल सारे
मन काशी हो जाता है।।

गलियों में नवरंग यहाँ पर
बरसे हैं सब रंग यहाँ पर
रस की धार बना-रसिया
जज्बातों को पंख यहाँ पर।

जज्बातों की धारा में मन
खुद को बहता पाता है।
जग के ठाठ भूल सारे
मन काशी हो जाता है।।

दुनिया के सब रौनक फीके
शानो शौकत सारे झूठे
जिस पर इसका रंग चढ़े है
रंग लगे सब उसको फीके।

काशी की गलियों में कोई
नहीं कभी तन्हा पाता है।
जग के ठाठ भूल सारे
मन काशी हो जाता है।।

अंतिम सत्य यहाँ मिलता है
सृष्टि का पल पल पलता है
जीवन मृत्यु मोक्ष कामना
उम्मीदों को पथ मिलता है।

जन्म मरण के सब बंधन से
जीवन मुक्त हुआ जाता है।
जग के ठाठ भूल सारे
मन काशी हो जाता है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21मार्च, 2021

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