नारी- सब सह लेती है।

नारी- सब सह लेती है।  

जब चाहे हँस लेती है
पर चुपके से रोती है
और नहीं वो नारी ही है
जो सब कुछ सह लेती है।

सूरज कभी कभी अलसा जाए
उसको अलसाते नहीं देखा
उठ जाती है सबसे पहले वो
कभी खुद को फुसलाते नहीं देखा
खुद का खयाल नहीं करती वो
पर वो सबको फुसलाती है।
और नहीं वो नारी ही है
जो सब कुछ सह लेती है।।

रसोई के गर्म मौसम में भी
वो शीतल बयार सी लगती
बाहर हो चाहे जैसा मौसम
वो तो बसंत बहार सी लगती
माथे पर भले हो गर्म पसीना
पर अबको शीतलता देती है।
और नहीं वो नारी ही है
जो सब कुछ सह लेती है।।

मुझसे ज्यादा क्या मेरी पसंद है
उसको  सब पहले से पता है
मेरे मन के सूनेपन  में भी
उसको लगता उसकी खता है
माँ, बहन, बेटी, पत्नी 
कितने ही किरदारों में ढल
सब पीड़ाएँ हर लेती है।
और नहीं वो नारी ही है
जो सब कुछ सह लेती है।।

उसका भी तो दिल सोचता होगा
उसका भी कहीं आसमाँ होगा
इस छोटी सी दुनिया में थोड़ा सही
उसका भी कहीं नामोनिशां होगा
नहीं कभी वो कहती  कुछ भी
पर सर्वस्व समर्पण कर देती है।
और नहीं वो नारी ही है
जो सब कुछ सह लेती है।।

मैं भी सोचता हूँ कभी
ना जाने किस मिट्टी की बनी है
धूप, ताप, बारिश या ठंडक
चुटकी में ही वो ढल लेती है
इतनी सहज प्रवृत्ति है उसकी
शायद इसीलिए सब कर लेती है।
जी हाँ वो नारी ही तो है
जो सब कुछ सह लेती है।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28मार्च, 2021




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