दुख में सुख को पलते देखा।

दुख में सुख को पलते देखा।

डगर डगर में नव प्रभात ले
उम्मीदों का सत्य सनात ले
आशाओं को खिलते देखा
दुख में सुख को पलते देखा।।

पृथक पृथक भावों को लेकर
भिन्न भिन्न परिभाषा लेकर
अभिलाषा को चलते देखा
दुख में सुख को पलते देखा।।

नूतन सपनों की आस लिए
प्रशस्त पुण्य आकाश लिए
अनुमानों को खिलते देखा
दुख में सुख को पलते देखा।।

धूप छाँव प्रकृति नियम है
चले जहाँ पथ वही सुगम है
कंटक पथ भी हँसते देखा
दुख में सुख को पलते देखा।।

©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30मार्च, 2021

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