मुक्तक

मुक्तक
     1
महज नजरों का धोखा है इसे कुछ और मत समझो।
मुसाफिर हूँ मोहब्बत का मुझे कुछ और मत समझो।
नहीं इसमें खता मेरी है सारा दोष नजरों का,
मैं आशिक हूँ नजारों का मुझे कुछ और मत समझो।
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       2
आये थे तेरे पास निभाने के वास्ते।
चले कुछ दूर तक साथ निभाने के वास्ते।
तुमने इसे मजबूरियों का नाम दे दिया,
छोड़ा तुम्हारा साथ निभाने के वास्ते।
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         3
ऐसा नहीं कि हमको कोई शौक नहीं है।
रुसवाइयों का दिल में कहीं खौफ नहीं है।
मजबूरियों ने शौक को ऐसा दफन किया,
हरदम यही कहा के हमको शौक नहीं है।
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          4
वक्त के सितम भी कितने क्रूर हो गए।
हम ठीक से मिले न थे कि दूर हो गए।
हाथ की लकीरों में कुछ तो कमी रही,
मजबूरियों में उलझे यूँ मजबूर हो गए।
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           5
ऐसा नहीं के आँख में मेरे नमी नहीं।
ऐसा नहीं कि अब भी है तुम पर यकीं नहीं।
हाँ, दूर हुआ तुमसे यही दोष है मेरा,
कैसे कहूँ तेरे बिना कोई कमी नहीं।
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             6
नहीं भूला अभी तक दिल पुरानी वो मुलाकातें।
अभी तक याद है दिल को सुहानी चाँदनी रातें।
नहीं है बेवफा कोई महज ये खेल किस्मत का,
गिरे जब हाथ से लम्हे न थी कुछ राज की बातें।
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                7
ये माना कि हमें इस राह में मिलना जरूरी था।
चले जिस राह हम तुम साथ में चलना जरूरी था।
मगर कुछ बंदिशें थीं, घाव थे दिल मे लगे ऐसे,
दिलों से बंदिशों के घाव का धुलना जरूरी था।
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                 8
यही चाहत है इस दिल की तुम्हें हर पल निहारूँ मैं।
तुम्हारे गेसुओं के छाँवों में लम्हा गुजारुँ मैं।
नहीं होंगे जुदा तुमसे अब यही वादा हमारा है,
कि अपनी साँस के हर मोड़ पर तुमको ही पुकारूँ मैं।
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               9
महफ़िल में यहाँ देखो हजारों लोग आए हैं।
दिल में प्यार, अपनापन भरे सब लोग आए हैं।
अपनी खुशनसीबी है मिले हैं आप सब हमको,
दिलों को जीतने सबके प्यारे लोग आए हैं।
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                 10
हैं लिखे जो गीत सब तुमको सुनाना चाहता हूँ।
तुम्हारे गीतों को मैं गुनगुनाना चाहता हूँ।
ख्वाहिश है तुम्हारे संग जीने और मरने की,
के मेरे दिल में है क्या-क्या दिखाना चाहता हूँ।
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                11
खुशी के साथ में कुछ गम का रहना भी जरूरी है।
किसी से बात अपने दिल की कहना भी जरूरी है।
कहीं ना बोझ बन जाये रुके आँसू इन आँखों में,
पलक के कोर से आँसुओं का बहना भी जरूरी है।
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               12
थी जाने कैसी जिद सभी पे भारी पड़ गई।
मजबूरियाँ सभी जिंदगी पे भारी पड़ गईं।
उलझे रहे सब शौक यहाँ मजबूरियों में यूँ,
कि ये जिंदगी भी मौत पे अब भारी पड़ गई।
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                 13
एक सपना नयन में छुपाए रहे।
बात दिल की लवों पे दबाए रहे।
जब भी सोचा तुम्हें बताऊँ कभी,
दूर होने के डर दिल में छाए रहे।
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                   14
ज़ख्म जो भी मिले हम सिले ही नहीं।
दाग दिल पर लगे जो धुले ही नहीं।
दिल को मेरे कोई शिकायत नहीं,
बस ये सोचा हम तुम मिले ही नहीं।
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                   15
साथ रहने का वादा अधूरा रहा।
भावनाओं का सागर अधूरा रहा।
राहों की थी जाने क्या मजबूरियाँ,
जब भी हम तुम मिले कुछ अधूरा रहा।
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              16
दूर अब भी वहीं है वो वीरानियाँ।
बैठ गिनता जहाँ अपनी तनहाइयाँ।
लोगों में मैं रहूँ या अकेले कहीं,
ढूँढता हर घड़ी तेरी परछाइयाँ।
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            17
न पुष्प लाया हूँ न नजराने लाया हूँ।
गीत की कुछ पंक्तियाँ सुनाने आया हूँ।
बस दिल में आपके जरा जगह बना सकूँ,
भावनाओं को मैं सहलाने आया हूँ।
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            18
शूल चुभे पैर में या लहू निकल पड़े।
ताप में झुलसे फफोले अब उबल पड़े।
रोकेंगी क्या मुश्किलें राह की तुम्हें,
हौसला जब जीत का लेकर निकल पड़े।
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              19
जो दूर तक चले उसी का साथ चाहिए।
जो हाथ न छोड़े उसी का हाथ चाहिए।
मिलने को मिल जाएंगे कितने सफर में,
जो साथ निभाए उसी का साथ चाहिए।
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             20
शब्द-शब्द हैं चुने तब पंक्तियां बनी।
पंक्तियाँ चुनी कहीं तब गीतिका बनी।
गीतिका में भरी जब दिल की भावना,
वही नेह के प्रसार की पत्रिका बनी।
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               21
नजराना चाहिए न उपहार चाहिए।
दिल में आपके मुझे बस प्यार चाहिए।
जिंदगी की दौड़ सभी जीत जाएंगे,
मुझको साथ आपका हर बार चाहिए।
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                  22
आज माना हारा हूँ पर दिल को गम नहीं।
हौसला मेरा हुआ है अब भी कम नहीं।
आज हारा हूँ मगर कल जीत जाएंगे,
अपना भरोसा है ये कोई भरम नहीं।
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                 23
कुछ पलों का साथ है ये मेरा आपका।
गीतों में जो भाव हैं वो प्यार आपका।
क्या कहूँ क्या-क्या मिला है मुझको आपसे,
सुन रहे हैं मुझको है अहसान आपका।
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               24
शिकायतें, हिदायतें सभी सहूलियतें बदल गईं।
इस जिंदगी के दौर की सब हकीकतें बदल गईं।
इंसानियत के मरने का है अब किसको गम यहाँ,
ताकत के इस दौर में सभी नसीहतें बदल गईं।
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              25
चेहरों पे सदा सबके तुम मुस्कान खिलाना।
सपनों की लिखावट से सदा घरबार सजाना।
हर पल रहे खुशियाँ सदा दामन में तुम्हारे,
आशीष है बेटी सदा तुम यूँ ही मुस्काना।
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                26
देखो मोहब्बत ने नई जीत लिखी है।
मजबूत इरादे ने नई प्रीत लिखी है।
अब लिख रही है भोर आसमान इक नया
सांध्य सितारों ने भी नई रीत लिखी है।
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                  27
मुश्किल थी यहाँ फिर भी हमने काम है किया।
हर पल तुम्हारे नाम का गुणगान है किया।
तुमने तो बस समझा हमें इक वोट की तरह,
जब चाहा भुनाया हमें और फेंक फिर दिया।
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                 28
बहुत वीरानियाँ पसरीं कभी कुछ शोर तो होगा
मिरी परछाइयों का भी कभी कुछ दौर तो होगा।
बहुत भटकी हैं राहें ये कितनी ख्वाहिशें लेकर,
मिरी तन्हाइयों का भी कभी कुछ ठौर तो होगा।
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             29
नहीं हूँ पास माना मैं मगर थोड़ी सी दूरी है,
के थोड़े फासले रखना यहाँ पर भी जरूरी है।
मैं कैसे भूल सकता हूँ बिताए संग लम्हों के,
समय के साथ चलना है तो दूरी भी जरूरी है।
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         30

है माना जेब खाली पर खरीद सकता हूँ,
हो चाहे दाम कुछ भी पर खरीद सकता हूँ।
इस प्रेम से मिली है मुझको दौलतें इतनी,
तुम्हारा दर्द जो भी हो खरीद सकता हूँ।
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         31
कल जो कहते थे कि, अब कल से वो नहीं आयेंगे,
फिर से गीतों को मेरे, अब वो न गुनगुनायेंगे।
नहीं शिकवा मुझे उनसे, अब न कोई शिकायत है,
मगर क्यूँ साथ छूटा है, यहाँ कैसे बतायेंगे।
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              32
अब कोई रुकावटें मुझको न रोक पायेंगी,
अब कोई भी वेदना मुझको न तड़पाएँगी।
जब से थामा है हमने हाथ राम का अपने,
कोई भी मुश्किलें राहों में अब न आयेंगी।
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             34
दूर जाते हो नजर से , तो चले जाओगे,
माना फिर लौट के तुम अब यहॉं न आओगे।
तुम्हारी बेरुखी भी सब कुबूल है मुझको,
मुझे यादों से भला कैसे, पर भुलाओगे।
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लोरियाँ यहीं कहीं

लोरियाँ यहीं कहीं

चाँद की जमीन पर, क्यूँ रोटियों का घर नहीं
क्यूँ नींद द्वार पर खड़ी, क्यूँ लोरियाँ कहीं नहीं

आज है धुआँ-धुआँ, कभी तो रात साफ होगी
उम्र की लकीरों की, ये गलतियाँ भी माफ होंगी
वक्त की पाबंदियां भी, अनछुई कहाँ रहीं
क्यूँ नींद द्वार .......

तक रही हैं चाँद को, रो रही हैं लोरियाँ
दर्द के प्रभाव को, न छू सकी हैं लोरियाँ
जाने क्यूँ बिखर रही, जब डोरियाँ यहीं कहीं
क्यूँ नींद द्वार......

रोटियों सी जिंदगी, कहीं पकी कहीं जली
कल खड़ी थी साथ-साथ, जाने अब कहाँ चली
जिंदगी की रोटियाँ भी, हैं दबी यहीं कहीं
क्यूँ नींद द्वार.......

सब्र कर वक्त अभी, आटा गूँधने में व्यस्त हैं
हाथ कितने यहाँ, रोटियाँ सेंकने में मस्त हैं
चर्चा है बाजार में, मिलेंगी रोटियाँ कभी
क्यूँ नींद द्वार.....

एक वक्त वो भी था, एक वक्त आज है
रोटियाँ ही ताज थीं, रोटियाँ ही ताज हैं
रोटियों के बोझ में, लोरियाँ दबी रहीं
क्यूँ नींद द्वार....

नग्न हो रही सदी, तमाशबीन वक्त है
दर्द से भरे हुए हैं, लोरियों में रक्त है
कंठ स्वर दबे हुए, क्यूँ आँख झर-झर बही
क्यूँ नींद द्वार.....

हाथ जोड़ कर खड़े हैं, ताज के जो दास हैं
सदियों दूर तक रहे जो, कह रहे हैं पास हैं
झूठ फिर श्रृंगार कर, मोह फिर से मन रही
है नींद द्वार......

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        29जुलाई, 2023

एक कहानी

एक कहानी

गाड़ी में पीछे 
बैठा मुसाफिर
अपनी ही धुन में है रहता
लिखता कभी कुछ 
कहता कभी कुछ
फिर पन्नों में डूबा रहता।

आती जाती 
राहों को तकता
हँसता कभी गुनगुनाता
जीवन सफर है 
मन है मुसाफिर
खुद से ही कहता सुनाता

न कोई दिन है 
न कोई रातें
आधी अधूरी 
रह जाती बातें
मीठी सी यादें, 
तुतलाती बोली
गाड़ी में उसकी 
होली, दिवाली।

जब मन मचलता
खुद में ही हँसता
लिखता दिलों की कहानी
लम्हों को चुनता
लम्हों को सुनता
लम्हों को लिख दी जवानी।

अपना है क्या और
क्या है पराया
मुस्का के सबके 
मन को लुभाया
ऐ दुनिया वालों
मानो न मानो
उसकी भी है 
कुछ कहानी।

मन जब मचलता
खुद ही बहलता
खुद ही है
खुद का वो साथी।

ऐ सुगना सुन ले
उसकी तू धड़कन
दे दे उसे कुछ निशानी
कब तक अकेला
गुमसुम रहे वो
अब पूरी कर दे कहानी।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
         28जुलाई, 2023





नई शुरुआत

नई शुरुआत

जिस मोड़ पे रुकी थी कभी अपनी जिंदगी
आ फिर शुरू करें वहीं से हम अपनी जिंदगी

इक लम्हा था गिरा जो कभी अपने हाथ से
छूटा था अपना हाथ जहां पे अपने हाथ से
आ फिर मिलें वहीं पे जहाँ बिखरी जिंदगी
जिस मोड़....

आये थे कितने लोग यहाँ कितने चल दिये
कुछ ने लुटाया प्यार यहाँ कुछ ने गम दिये
रिश्तों की कशमकश में घुटी अपनी जिंदगी
जिस मोड़.... 

अब खुद के मन से जाने क्यूँ बिछोह हुआ है
अब कैसे कह दूँ खुद से खुद को क्षोभ हुआ है
देख अपनी जिल्द में सिमटती अपनी जिंदगी
जिस मोड़.....

कोने में अब भी दिल के मगर आस बाकी है
उखड़ी हुई है माना मगर कुछ साँस बाकी है
उम्मीद के सिरे में कहीं है बँधी अपनी जिंदगी
जिस मोड़....

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        25जुलाई, 2023

बिलखती धरती

बिलखती धरती

आज बिलखती धरती माता केशव क्यूँ कर दूर खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

दूर दृष्टि का दंभ भरें क्यूँ पास हुआ जब देख न पाए
चीरहरण की कितनी घटना भूल इन्हें मन कैसे जाए
लगता शायद दरबारों में वोटों का अपकर्ष बड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

बिलख रही मानवता सारी देख बिलखती घर-घर नारी
दुर्योधन बन बैठे सारे हैं बने हुए सारे दरबारी
अपने घर की घटना छोटी दूजे का अपराध बड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

पूर्व में देखा पश्चिम देखा उत्तर देखा दक्षिण देखा
सत्ता मद में अपराधों का कदम-कदम पर रक्षण देखा
आज निहत्था कुरुक्षेत्र में अभिमन्यू फिर देख खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

इन राज्यवार घटनाओं के ब्यौरे से क्या हासिल होगा
मौन रहा फिर आज समय तो अपराधों में शामिल होगा
दुखती धरती की छाती पर दुःशासन फिर आज खड़ा है
शायद भारत की नियती में सत्ता का संघर्ष बड़ा है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023

गजल- गीत कोई गाए कैसे

गजल-गीत कोई गाए कैसे

कैसी मुश्किल है कोई दिल को बताए कैसे
दर्द कब हद से गुजरता है  जताए कैसे

दूर तक जख्मों से छलनी हों जो मन की राहें
कोई इन राहों पे जाए तो वो जाए कैसे

हर किसी को  जो नहीं मिलता  मुहब्बत का सफर
कोई फिर दिल को दिलासा ये दिलाये कैसे

फिर से इन आँखों में  थोड़ी-जो नमी आयी है
आज आँखों से कोई अश्क छिपाए कैसे

भीड़ भी यूँ तो हरिक सिम्त मगर किससे कहें
 ये नकाबों का शहर है तो यूँ जाएं कैसे

गीत रहते हैं दफन  दिल में तेरी यादों के
"देव" महफ़िल में तेरी कोई भी गाए कैसे

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023




कोई बहाना बता दो

कोई बहाना बता दो

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

नन्हें पैरों के नीचे खुला आसमान
हर कदम यूँ लगे ज्यूँ नया हो विहान
हर घड़ी पलकों पे दृश्य नूतन सजे
भाव की पालकी नित्य नूतन लगे
नैन में दृश्य फिर से वही लौट आए
खोया हुआ वो खजाना बता दो।

न खबर न फिकर थी दुनिया जहाँ की
क्या है अपना-पराया फिकर ही कहाँ थी
जो मिला प्यार से मन उसी का हुआ
थपकियाँ नेह की मन का आँगन छुआ
वही थपकियाँ पलकों पे लौट आएं
ऐसा हमें फिर ठिकाना बता दो।

रिश्तों की डोर को थामकर उँगलियाँ
उड़ती रहतीं मगन प्यार की तितलियाँ
गुड़ की भेली बताशों की वो चाशनी
चाँदनी रात में ज्यूँ घुली रोशनी
रिश्तों को बाँधने फिर वहीं लौट आएं
फिर से रिश्तों को मन से निभाना बता दो।

कहाँ थे कहाँ आ गया अपना जीवन
दूर लगता है जाने क्यूँ मन का ये उपवन
रोटी, कपड़ों की जद्दोजहद ये बड़ी है
मुश्किलें लग रही जिंदगी से बड़ी हैं
खोई मुस्कान अधरों पे फिर लौट आये
दोस्ती की वो भुला तराना सुना दो।

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023

जीवन नैया डोल रही है

जीवन नैया डोल रही है

जीवन के महा समर में अब तो राह दिखा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

दूर-दूर तक गहरा सागर मुश्किल जाना पार हुआ है
भटक रहा मन अँधियारों में मुश्किल जग संसार हुआ है
ज्ञान ध्यान का दीप जलाकर मन का अँधियार मिटा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

हम सेवक प्रभु तुम हो स्वामी हम दीन-हीन प्रभु अंतर्यामी
तुम सा नहीं कोई जगत में तुम चंदन प्रभु हम हैं पानी
भरम जाल में उलझा है मन प्रभु आकर आस जगा जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

भीड़ भरे इस वीराने में तुम ही हो इक मात्र सहारा
किससे मन की बात कहूँ मैं तुम बिन मेरा कौन सहारा
कुरुक्षेत्र में उलझा है मन गीता का सार सुना जाओ
जीवन नैया डोल रही है आओ पार लगा जाओ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22जुलाई, 2023

दिखता नहीं है

दिखता नहीं है

जाने अब सम्मान यहाँ दिखता नहीं है
इंसान को इंसान यहाँ दिखता नहीं है

खून से जिसने नवाजा जिंदगी को
उसका क्यूँ अहसान यहाँ दिखता नहीं है

चीखती है मौत भी देखो यहाँ अब
दर्द का आसमां यहाँ दिखता नहीं है

दूर देखो लाज का परदा लुटा है
घाव उसका क्यूँ यहाँ दिखता नहीं है

कौरवों की भीड़ का आतंक देखो
आँखों को अब भी यहाँ दिखता नहीं है

भीड़ में कोई नहीं जो सुन सके अब
"देव" केशव अब यहाँ दिखता नहीं है

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        21जुलाई, 2023

वक्त गीत हमारा गायेगा

वक्त गीत हमारा गायेगा

कब वक्त यहाँ पर ठहरा है जो आज ठहर वो जायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

कितनी गजलें, कितनी कविता, कितनी रातें कितने सपने
कितने भाव सुनहरे गाये, कितने हुए पराए अपने
कितने भाव पंक्ति में सिमटे, ये वक्त कभी बतलायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

आज यहाँ हम गाने वाले, क्या जाने कल और कहाँ हो
आज दिलों में रहते हैं हम, क्या जाने कल ठौर कहाँ हो
आज लिखे जो यहाँ कथानक, फिर कल कोई दुहरायेगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

कितनी शिद्दत से गीतों में हमने अपनापन पाया है
जितना तुमको सुनते देखा उतना खुलकर के गाया है
अपनेपन के इन गीतों से कल कोई मन बहलाएगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

पंक्ति-पंक्ति में इन गीतों के जीवन की मधुर कहानी है
बीत चुके हैं कितने जीवन जो बाकी बची सुनानी है
आज सुनाता हूँ मैं इनको कल कोई और सुनाएगा
हम दूर रहें या पास रहें पर गीत हमारा गायेगा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जुलाई, 2023

शिव भजन।

शिव भजन।  

हाथ में डमरू जटा में गंगा, भस्म लपेटे रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

नहीं और कोई जगत का स्वामी
मेरे भोले हैं अंतर्यामी
जो भी इनकी शरण में आया
मनचाहा वो फल पाया
भटकों को हैं राह दिखाते
सबके मन की सुनते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

कोई नहीं है शिव सा दानी
शिव हैं चंदन हम हैं पानी
भरम जाल में उलझे सारे
आये प्रभु सब द्वार तिहारे
सबकी पीड़ा कष्ट निवारे
नीलकंठ बन रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

हम भी द्वार तिहारे आये
भक्ति भाव के पुष्प चढाये
हम माया में उलझे सारे
हर पल तुम्हरी ओर निहारें
प्रभु जगत के पालनहारे
सबके दिल में रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

प्रभु की महिमा हम क्या गायें
वेद, ग्रन्थ सब गाते हैं
प्रभु की एक झलक मिलने से
खुद देवलोक हरषाते हैं
भक्तों के सब कष्ट हरें प्रभु
हरपल हँसते रहते हैं
इनके शरण में जो भी आया, कष्ट सभी के हरते हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जुलाई, 2023

कजरी।

कजरी।  

पिया सावन में हमके बुलाई ल जिया हरषाई द न
पिया सावन में.....।

पड़े बरखा बहार तरसे मनवा हमार
पड़े बरखा बहार तरसे मनवा हमार
अबके सावन में झलुआ झुलाय द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में......।

कइसे तोहके बोलाई कहा कइसे समझाई
कइसे तोहके बोलाई कहा कइसे समझाई
का बताई के कइसन अब हाल बा
जिया बेहाल बा न।

जब से गइला परदेस नाही चिट्ठी संदेश
जब से गइला परदेस नाही चिट्ठी संदेश
अबकी सावन में सुरतिया दिखाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में....।

सुबह, साँझ, दिन, रात बाटे तोहरे खयाल
सुबह, साँझ, दिन, रात बाटे तोहरे खयाल
बिना तोहरे ई जिनगी मोहाल ब
जिया बेहाल ब न।

बड़ी बैरन हौ रात करी केकरा से बात
बड़ी बैरन हौ रात करी केकरा से बात
अबके सावन में हमके सजाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में....।

जो न बाहर कमाइब बोला कइसे खियाईब
जो न बाहर कमाइब बोला कइसे खियाईब
बड़ा मुश्किल भयल अबकी साल बा
जिया बेहाल ब न।

हरदम मनवा डेरात आवे कइसन खयाल
हरदम मनवा डेरात आवे कइसन खयाल
आ के हमके तू फिर से हँसाई द
जिया हरषाई द न
पिया सावन में...।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16जुलाई, 2023




हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

यूँ तो मन में भावनाओं का बहा निर्झर हमेशा
पर क्या जानूँ क्यूँ रुके स्वर कंठ तक आकर हमेशा
भाव मेरे छू के अपने भाव का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

ये उँगलियाँ इन अक्षरों को छू सकें मचलीं हमेशा
गीतों की ये पंक्तियाँ मृदु स्पर्श को भटकीं हमेशा
छू के अपने आधरों से जिंदगी की आस दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

द्वार अधरों के रुकी हैं मन की सारी अर्चनाएं
चाहकर भी कह सके ना मन की सारी भावनाएं
अपने भावों से मिलाकर साँस का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जुलाई, 2023


लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है

लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है

खुश नहीं है आत्मा क्या जाने क्यूँ ऐसा हुआ है
कौन जाने इस हृदय को दर्द ये कैसा छुआ है
पूछते हैं शब्द सारे व्याकरण सुलझे नहीं क्यूँ
पँक्तियों में प्रश्न के वो अर्थ अब खुलते नहीं क्यूँ
जाने न क्यूँ उत्तरों में पीर का मंथन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

उम्र भर शंकित रहा मन उलझनों में अड़चनों में
सोचता पल-पल रहा क्यूँ बँध न पाया बंधनों में
तोड़ जाने क्यूँ न पाया वक्त की सब वर्जनाएं
छल रही थी हर घड़ी जो थी कहीं कुछ एषणाएं
जाने न क्यूँ उम्र का किस पीर से बंधन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

यूँ लग रहा है दर्द ही इस गात का श्रृंगार है
अब आँसुओं का खार ही इस जिन्दगी का सार है
मौन मन की भावनायें क्या कहूँ क्यूँ जल रही है
स्वयं की ये वेदनाएं स्वयं को क्यूँ छल रही है
लग रहा इस गात का अब पीर ही चंदन हुआ है
लग रहा है मन हमारा पीर का नंदन हुआ है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       14जुलाई, 2023

ऐषणाएं- अभिलाषा, याचना

दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है

दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है

अंजुरी में पुष्प भर कर आचमन करता हृदय
छंद की नव पंखुरी से गीत में भरता प्रणय
सुप्त होती भावनाओं को जगाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

शांत सागर सम हृदय में प्रेम के संदेश सा
निर्लिप्त मन में लालसा, नेह के संकेत सा
शून्यता में कामनाओं को जगाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

आरंभ है या अंत है या के अपरिमेय है
पास अपनी सी लगे ये और कभी अज्ञेय है
शून्य मन के भाव में हलचल मचाता कौन है
दूर सागर पार मन के गीत गाता कौन है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जुलाई, 2023


अबके पावस में दिल चाहे तुम पर कोई गीत लिखूँ

अबके पावस में दिल चाहे तुम पर कोई गीत लिखूँ

अब तक कितने गीत लिखे, विरह वेदना प्रेम समर्पण
कुछ में खुद को पाया है, और किया कुछ में सब अर्पण
पर अब गीतों में दिल चाहे, पंक्ति-पंक्ति में प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

कितने कल्पित भावों से, रहा भ्रमित ये हृदय हमारा
खोज में ढाई अक्षर के, रहा भटकता मारा-मारा
सारे कल्पित भावों के, क्या हार लिखूँ क्या जीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

दिवस रात का मिलन अनोखा, देख प्रहर भी ठहरा है
दूर क्षितिज पर उम्मीदों का, रंग अभी भी गहरा है
रिमझिम बारिश की बूँदों में, सांध्य पलों की प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

साँस-साँस के प्रति पृष्ठों पर, दिल चाहे श्रृंगार लिखूँ
छंद-छंद नव रीत सजाकर, मैं जीवन का सार लिखूँ
जीवन के इस पुण्य ग्रन्थ का, दिल चाहे मनमीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जुलाई, 2023

हृदय का खालीपन।

हृदय का खालीपन।  

पलकों की गिरती बूँदों से मन को चाहे लाख भिंगो लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

बिना कथानक बनी यहाँ कब मन की एक कहानी कोई
रंगमंच पर बिना पटकथा कृतियाँ सारी सोई-सोई
संवादों में लिखे शब्द से पृष्ठों को फिर लाख सजा लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

पाँव जले मरुथल में कितने किसने देखा पता नहीं है
चले शूल पर कितने सपने पलकों को जब पता नहीं है
रात चाँदनी में नयनों के अनुरोधों को लाख जता लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

असमंजस के चक्रव्यूह में अभिमन्यू का जीवन दंडित
कुछ साँसों में कुछ आहों में आस निराशा के पल खंडित
रिश्तों के बेमेल चयन में कितना भी विश्वास जता लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

ओस बूँद से इस जीवन की मुश्किल प्यास बुझा पाना है
भागीरथ जो बना वही तो जाना क्या खोना-पाना है
टुकड़े-टुकड़े चाँद अंक में लाकर चाहे लाख सजा लो
लेकिन संभव नहीं हृदय का सारा खालीपन भर पाना।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07जुलाई, 2023

शब्द हृदय का परिचय दे दें।

शब्द हृदय का परिचय दे दें।  

साँस-साँस में करूँ आरती, मैं आहों में गुणगान करूँ,
काश कभी ऐसा हो जाये, शब्द हृदय का परिचय दे दें।।

मुक्त गगन में उड़ते फिरते, संभव गीतों में ढल जाना,
कहना मन की बात निखरकर, भावों का ले ताना-बाना।
पल में छू लूँ हृदय वृन्द मैं, फिर अंतस में आख्यान करूँ,
अंजुलि में वो भाव भरूँ जो, पुण्य प्रवण का निश्चय दे दें।।

खोल हृदय के वातायन सब, बंधन सभी मुक्त हो जायें,
कुछ तो ऐसा लिखो आज फिर, मन ये प्रेम युक्त हो जाये।
कहीं वेदना यदि गहरी हो, मनमीत बने अवदान करे,
मिले नयन के मृदु बूँदों में, कोरों से जो अनुनय कर दे।।

बिन धागा के मोती बिखरे, माला में कब बँध पाते हैं
भटके मन के भाव अगर तो, छंद यहाँ कब सज पाते हैं
कहीं व्याकरण युक्त हृदय हो, जो त्रुटियों का संज्ञान करे
संभव होता पंक्ति-पंक्ति में, साँसों का जो संचय कर दे।

काश कभी--------।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        05जुलाई, 2023


यादों के विषधर।

यादों के विषधर।  

रजनीगंधा नहीं महकती
दूर हुई कदमों की आहट
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

दूर हुई जीवन की पुस्तक
शब्द अधूरे बिखरे-बिखरे
एकाकीपन की पीड़ा से
धड़कन दिल की कैसे निखरे।

उलझन मन की नहीं सुलझती
मन ये चाहे थोड़ी राहत
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

सांध्य अजनबी सी लगती है
रात नहीं फिर अब सजती है
भीड़ भरे इन सन्नाटों में
आहें भी सिमटी रहती हैं।

सुधियों के मेले जब सजते
मन में भी होती अकुलाहट
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

जीवन बस बीता जाता है
पल-पल दुख सीता जाता है
लेकिन यादों के पनघट पर
मन का घट रीता जाता है।

रिसते हुए पीर के पल से
साँसों ने जब चाही चाहत
तब यादों के विषधर मन को
दंशों से घायल करते हैं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03जुलाई, 2023






चलो ढूँढ़ लाएं।

चलो ढूँढ़ लाएं।  

साँझ की धुंध में खो न जाएं कहीं
यादों से फिर गीत अपने सजाएँ
खो न जाये कहीं याद फिर रात में
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।

लहरों की धुन पर बूँदों की लड़ियाँ
नाचें हैं जैसे नयनों में परियाँ
अधरों पे यादों के गीत सजे हैं
पलकों में खुशियों के दीप सजे हैं
चलो फिर नया दीप कोई जला लें
यादों को फिर से गले हम लगा लें
कहीं फिर से ये रास्ते खो न जायें
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।

छम-छम फुहारों ने सरगम सजाया
ऋतुओं ने फिर से मिलन गीत गाया
चलो फिर मौसम में हम भींग जाएं
बीते दिनों को हम फिर से बुलाएं
फिर दूर पनघट पे यादें न तरसें
मिलें इस तरह कि फिर पलकें न बरसें
सोई हुई साँसें फिर से जगाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूंढ लाएं।।

तुमसे शुरू हो ये तुम पर खतम हो
तेरा साथ पाऊँ कोई जनम हो
जैसे किनारों को लहरें सजायें
तुझे मैं सजाऊँ मुझे तुम सजाओ
प्यासी मैं नदिया सागर तू मेरा
तुझसे खिला मेरे मन का अँधेरा
अँधेरी राहों को फिर से सजाएं
इक दूजे को फिर चलो ढूँढ़ लाएं।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       30जून, 2023
       





पल संयोग के।

पल संयोग के।  

कट चुके हैं जिन्दगी के, पल जो थे वियोग के
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

मौन थी राहें सभी ये, मौन थे सपने सभी
दूर होते जा रहे थे, पास थे अपने कभी
तुम चले हम चले, यहाँ जाने किस सहयोग से
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

कुछ तुम्हारे मन में, और कुछ मन में हमारे
राहतें कुछ पल रहीं, जानूँ न किसके सहारे
मन में मन की चाह पनपी मन के मनयोग से
आ रहे हैं पल मिलन के, देख लो संयोग से।

दूर था जाना मगर, दूर जाकर रह न पाये
अलिखित पँक्तियों को गीतों में फिर गुनगुनाये
गीत सकुचित जी उठे फिर प्रीत के अवियोग से
आ रहे हैं पल मिलन के देख लो संयोग से।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27जून, 2023

सब माटी सब धूल।

सब माटी सब धूल।  

दोहा 

बिना ज्ञान के लेखनी, उतना ही मन भाय।
जैसे अधजल गागरी, पथ में छलकत जाय।।1।।

माता के परित्याग पर, प्रश्न उठाते लोग।
प्रभु की निष्ठा पर यहाँ, दोष लगाते लोग।।2।।

जैसी बुद्धि विवेक है, वैसे प्रश्न उठाय।
जाकी जैसी भावना, वैसा ही फल पाय।।3।।

चौपाई

धर्म ज्ञान के ज्ञाता सारे, बाँच रहे रामायण सारे।।
अपने मन के प्रश्न उठाते, रामायण की कथा सुनाते।।

कहते माता को क्यूँ छोड़ा, क्यूँ कर उनसे नाता तोड़ा।।
रामायण में कमी बताते, प्रभु के मन को कब छू पाते।।

नारीवादी बनते सारे, गर्भ में फिर कन्या क्यूँ मारे।।
खुद नारी ना नारी भावे, औरों पर क्यूँ प्रश्न उठावे।।

राजा का बस धर्म एक है, जन सेवा ही धर्म नेक है।।
ऊंच नीच का भेद न माने, परहित सेवा केवल जाने।।

राजा वही सभी की सुन ले, स्वार्थ छोड़ जन सेवा चुन ले।।
अपना क्या है कौन पराया, जो भी आया नेह लुटाया।। 

अपने सुख का त्याग किया है, राज धर्म का मान किया है।।
राजा पर जब प्रश्न उठाया, खुद को ही तब सजा सुनाया।।

जब से त्याग सिया का कीन्हा, अपने प्राण स्वयं हर लीन्हा।।
प्रभु का दुख क्यूँ देख न पाये, अर्ध ज्ञान जब कथा सुनाये।।

राजकीय पद की है गरिमा, अपने मुख से कैसी महिमा।।
साधू, सन्यासी या राजा, श्रेष्ठ वही जिसने सुख त्यागा।।


दोहे

बिन जाने समझे बिना, कहें न कोई बात।
मन ही केवल जानता, नयनों की बरसात।।1।।

मर्यादा प्रभु राम ही, भारत के हैं मूल।
इनके सम्मुख सम्पदा, सब माटी सब धूल।।2।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        24जून, 2023

दोहे।

दोहे। 

धन से बड़ा न दीखता, आज नहीं अब पंथ।
बौने इसके सामने, हुए सभी क्यूँ ग्रन्थ।।

सबके अपने हैं विषय, सबके हैं अनुराग।
अपनी-अपनी लेखनी, अपना-अपना राग।।

औरों की आलोचना, अपनी गलती माफ।
इससे पहले राखिए, अपने मन को साफ।।

विश्लेषण बस वो करे, जिसका ज्ञान अपार।
कहे अन्यथा देव फिर, बातें सब बेकार।।

अपने-अपने भाव को, व्यक्त करें सब लोग।
कोई करता मौन से, कोई कर सहयोग।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20जून, 2023





मैं तेरे आँसू पी लूँ।


मैं तेरे आँसू पी लूँ। 

यहीं कहीं पर जीवन है इक बार तो मैं जी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

कितनी बार उठे हैं गिरकर इन पथरीली राहों में
रोकर कितनी बार हँसे हैं इक दूजे की बाहों में
कल जो दर्द मिला था उसके जख्म आज मैं फिर सी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

उम्र हमें अब ले आयी है यादों के मैखाने में
बीते दिन फिर छलक रहे हैं पलकों के पैमाने में
यादों में जो आह बसी है उन आहों को मैं जी लूँ
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

जीवन की ये सांध्य सुनहरी जाने कितनी देर चलेगी 
दूर क्षितिज को तकती आँखें क्या जाने कब कहाँ ढलेगी
दिल चाहे सपना बन जाऊँ मुझको पलकों में सी ले 
तू मेरी खुशियाँ जी ले मैं तेरे आँसू पी लूँ।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जून, 2023


पिता दिवस।

पिता दिवस।  

जो खुद पिता है 
वो पिता दिवस 
पर क्या लिखेगा
चंद पसीने की बूँदें, 
सिलवट भरे कपड़े
अनसुलझे सवालात, 
कुछ जज्बात लिखेगा।
कब कहा उसने कि 
उसका भी 
एक दिन मुकर्रर हो
हाँ, 
कुछ कहे अनकहे सपनों पर
बस मुस्कुराकर 
हालात लिखेगा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18जून, 2023

दोहे- " आदिपुरुष " पर।

दोहे- " आदिपुरुष " पर।  

बैठे गिद्ध दृष्टि डाल, सत्ता लोलुप लोग।
शुचिता की किसको पड़ी, करते नित नव भोग।।

अभिव्यक्ति के नाम पर, मची हुई है गन्ध।
आदिपुरुष को देख कर, जनता सारी दंग।।

क्या पैसा इतना बड़ा, नैतिकता निर्मूल।
धर्मपरायणता सभी, गये सभी क्या भूल।।

ग्रन्थों पर आक्षेप अब, लगता बारंबार।
फिल्मों में परिहास का, सजा नया बाजार।।

हैरत में प्रभु राम हैं, आदिपुरुष को देख।
सोच रहे कैसे मिटे, संवादों का लेख।।

धन के नीचे दब गये, धर्म ग्रन्थ पहचान।
नैतिकता गिरवी हुई, पैसों का सम्मान।।

जनता को अब सोचना, अपने धन का मोल।
अनुचित का अब त्याग हो, शुचिता का हो मोल।।

मौन उचित है बस वहीं, जहाँ धर्म का मान।
ऐसे पथ को त्यागिये, होय जहाँ अपमान।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       18जून, 2023

मैं जानूँ या दिल जाने।

मैं जानूँ या दिल जाने।  

पल-छिन पल-छिन इस जीवन के, कैसे बीते क्या जानें
कितनी बातें कितनी यादें, मैं जानूँ या दिल जाने।

नयनों ने कितने पल देखे, यादों के इस मेले में
सपने कितने छलक गये हैं, बूँदों के इस रेले में
पलकों को कैसे समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

सावन बरसे रैना तरसे, निस दिन इस अँगनाई में
मैं तो पल-पल ढूँढूँ खुद को, अपनी ही परछाईं में
रातों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

यादों के मेले में जब भी, कभी अकेले होते हैं
भीड़ भरी तन्हाई में भी, छुप-छुप अकसर रोते हैं
यादों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

नहीं किसी से रही शिकायत, अब कोई अफसोस नहीं
और नहीं उम्मीद किसी से, अपना ही जब होश नहीं
होश गँवा कर क्या-क्या पाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       17जून, 2023

प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

आज मन की दहलीज पर हैं खड़ी कुछ कल्पनायें
दे रहीं दस्तक हृदय पर फिर मचलती कामनायें
कल्पनाओं से हृदय के शून्य को हम आज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

कुछ अधूरे स्वप्न लेकर साथ हम तुम चल रहे हैं
नेह का अहसास है जब स्वयं को क्यूँ छल रहे हैं
नेह का अहसास चुनकर प्रीत का घट आज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

जीत की फिर क्यूँ हवस हो जब हारने में जीत हो
शब्द भी रहते अबोले जब इस हृदय में प्रीत हो
हार कर इक दूसरे को गीत में नव साज भर दें
प्रेम के प्रतिमान सारे गीत में हम आज भर दें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        16जून, 2023

आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

है विदित इतना सभी को जो किया वो ही भरेगा
भाग्य का लेखा मिटाना कब यहाँ संभव रहेगा
जानते हैं सब यहाँ पर है कहीं कुछ तो बकाया
पुण्य के इस खेल में जो कुछ बचा वो साथ आया
रेख जब इतना लिखा था फिर विकल जज्बात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

इस जिंदगी की राह में कितने उठे कितने गिरे
कुछ तो सँभल कर चल दिये कुछ मंजिलें तकते रहे
ताकती है राह अब भी कौन जो अवरोध तोड़े
दूर होती मंजिलों के पास जाकर राह जोड़े
जब नहीं कोई सहारा फिर तड़पती राह क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

आज जो है पास अपने कौन जाने कल रहेगा
दर्द जो जिसको मिला है वो यहाँ अपना सहेगा
क्या पता कब सांध्य ढलकर राह अपनी चल पड़ेगी
पृष्ठ में इतिहास के छप सांध्य की बातें कहेगी
सांध्य का मन पढ़ न पाया फिर बिलखती रात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        15जून, 2023

अधूरे गीत।

अधूरे गीत। 

कुछ शब्द अधूरे हैं, इन गीतों में अब भी
कुछ शब्द मिला कर के, पूरा हम भर दें।

बीते कितने ही दिन, बीती कितनी रातें
हैं कहीं अधूरी कुछ, हैं पूरी कुछ बातें
कुछ बात सँभालो तुम, कुछ बात सँभालें हम
इस खालीपन को हाँ, फिर पूरा हम भर दें।

मेरी आवाजों से, आवाज मिला दो तुम
जो भूले बिसरे हैं, वो साज मिला दो तुम
जो दर्द कहीं पर हो, फिर उसे भुला कर हम
इस सूनेपन को फिर, सपनों से हम भर दें।

कुछ बची कहीं अब भी, बिखरी वो रातें हैं
शायद यादों में ही, बाकी सौगातें हैं
जो पास बचा है कुछ, फिर उसे सजा कर हम
इन बिखरी साँसों को, उम्मीदों से भर दें।

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        13जून, 2023


काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

मेरे अधरों पर रुके हैं शब्द कुछ अब भी अबोले
चाहता है ये हृदय के दिल के सारे राज खोले
जाने क्यूँ असमंजसों में मन मौन होकर रह गया
क्यूँ जाने पीड़ा के पलों का दर्द सारा सह गया
आह के बीते पलों को आ के कोई साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

लग रहा गुजरे पलों ने फिर से है हमको पुकारा
इस पिघलती साँझ का यहाँ कौन है बोलो सहारा
धुंध है या मौन यहाँ जो इन पलों में छा रहा है
ऐसा क्यूँ लगता कहीं पर गीत कोई गा रहा है
काश जब भी गीत गाता कोई मेरा साथ देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

ढल चुकी है सांध्य कितनी, बाकी हैं कुछ उँगलियों पर
पर यूँ लगता स्वप्न बाकी, नाचते हैं पुतलियों पर
अब क्या कहूँ कि इस सफर की सांध्य कैसे ढल रही है
क्या कहूँ श्वासों को रातें क्यूँ अकेली खल रही है
काश कोई रात के गीतों को आकर साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जनवरी, 2023

कैसा बोलबाला है।

कैसा बोलबाला है। 

नई-नई आदतों का नया-नया दौर है ये
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट में बिजी है
कहते हैं युवा उनकी लाइफ बहुत निजी है
लाइक, सब्स्क्रिप्शन की भाग दौड़ बड़ी है
जिसे देखो उसी को अब व्यूअर्स की पड़ी है
मोबाइल ने मन पे जाने कैसा डाला ताला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

ऑनलाइन हुए जबसे ऑफलाइन छूट गया
मिल के जो बना था वो रिश्ता फाइन टूट गया
आई फोन, आई पैड स्टेटस के सिंबल हैं
इनके बिना जाने क्यूँ लाइफ ये सिंगल है
स्टेटस के चक्कर में निकला दिवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

भाव छूटी, भक्ति छूटी नेह वाली शक्ति छूटी
दया छूटी, दृष्टि छूटी मेल वाली युक्ति छूटी
वेद छूटा, शास्त्र छूटा, गीता और पुराण छूटा
शिक्षा, धरम, संस्कृति पर से अभिमान छूटा
पश्चिम के खुलेपन से मन हुआ मतवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

संगी छूटे, साथी छूटे, दादी छूटी, नानी छूटी
दूध भात कटोरी वाली चंदा की कहानी छूटी
गिल्ली छूटी, डंडा छूटा,  छुप्पन छुपाई छूटी
छत के बिछौने छूटे, तारों की गिनाई छूटी
चंदा की कटोरी में है दूध-भात अब भी
ढूंढता है चंदा इसे कहाँ खाने वाला है।

मिलना-जुलना कम हुआ रिश्ते सभी गुम हुए
कल तक हम थे कब जाने मैं और तुम हुए
रिश्ते सिमट सभी फोन में ही आ गये हैं
आजकल उजालों की अँधेरे भी भा गये हैं
रातें फिर ढूँढ़ रही कहाँ खोया वो उजाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11जून, 2023

मुक्तक- मुस्कान।

मुक्तक।  

कभी होता है फूलों में भी कोमल पाँव छिलते हैं
कभी होता है छाँवों में के अकसर पाँव जलते हैं।
प्रसन्न रहने की दुनिया में कोई शर्त नहीं होती
जो मरुथल में हो उम्मीदें वहाँ भी फूल खिलते हैं।।

अब मिले जो जख्म यादों से चलो हम दफ्न कर आएं
हुआ जो कल ये बेहतर है कि उसको भूल हम जायें।
इस उदासी ने हमेशा दर्द को पल-पल बढाया है
भुला कर दर्द बीती का हँसे औरों को हँसा जायें।।

ये मेरा दर्द है इसको मुझे अब आज सहने दो
बहुत चाहा इसे पल-पल के अब तुम और रहने दो।
मेरे हर जख्म को मुस्कान में तुमने बदल डाला
तुम्हीं पर आसना है दिल मुझे अब आज कहने दो।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        09जून, 2023

देख अनदेखा किये।

देख अनदेखा किये।  

उम्र कल तक गीत लेकर द्वार तक आती रही
और हम उस गीत को ही देख अनदेखा किये।

मिलते रहे हमेशा, रास्ते एक दूसरे से
कहते रहे कहानी, आहें एक दूसरे से
बिछड़े जो रास्ते तो, ये साँसें बिछड़ गयीं सब
आहों के दास्ताँ में, जा कर बिखर गयीं सब
आहें ये दर्द लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस दर्द को भी, देख अनदेखा किये।

गीतों में लिखते आये वो सारी निशानियाँ
अधरों पे आकर छाईं, वो दिल की कहानियाँ
शब्दों ने जाने कितने, मंजर भिंगो दिये हैं
कहने से पहले दिल पे, खंजर चुभो दिये हैं
आहें ये घाव लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस घाव को, भी देख अनदेखा किये।

अब दोष किसको देना, अपना करम है सारा
जिससे बिछड़ गये थे, था शायद धरम हमारा
अब अकेले हैं यहाँ पर, और नहीं है अपना
रह-रह बिछड़ गये हैं, नयनों का देखा सपना
पलकें वो स्वप्न लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस स्वप्न को भी, देख अनदेखा किये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जून, 2023




दुनिया का ये अंत नहीं।

दुनिया का ये अंत नहीं।  

पुण्य पंथ पर चलने वालों रुक मत जाना घबराकर
दूर क्षितिज पर डूबा सूरज समझो इसको अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

नहीं रहा है यहाँ सदा ये वक्त बदलता रहता है
नहीं भुलावे की ये बातें स्वयं समय ये कहता है
धूप-ताप जिसने भी झेला वो खिला है कुम्हलाकर
तनिक ताप में कुम्हलाना छाँव का समझो अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

तेरे-मेरे मन की बातें कही-सुनी रह जाएंगी
कविताओं की सारी बातें पन्नों में रह जाएंगी
कविताओं में शब्द छपे जो रखते हैं मन को बहलाकर
लेकिन मन की व्याकुलता से कविताओं का अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

जो कुछ मन ने यहाँ बटोरा इक दिन सब चुक जाएगा
चलते-चलते कदम यहाँ पर कब जाने रुक जाएगा
रोक सका है कौन किसी को सबने देखा फुसलाकर
लेकिन इसके रुक जाने से राहों का है अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

इक आँसू लेकर आये थे हँसते-हँसते जाना है
जीवन है एक महासमर ये क्या खोना क्या पाना है
खोने-पाने की जिद ने रख दिया हृदय को बिखराकर
पाया जो शुरुआत समझ जो खोया उसको अंत नहीं
कर अपने मजबूत इरादे दुनिया का ये अंत नहीं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02जून, 2023

छलक जाती है कविता।

छलक जाती है कविता।  

उफनते भाव मन के जब ,पलक के कोर तक आते
आँखों की सियाही से, छलक जाती है तब कविता।

नदी गहरी तेज धारा, लगे धुँधला जब किनारा
राहें चल के रुक जायें, नजर कुछ दूर झुक जायें
थके मन से किनारे जब, नहीं कुछ और चल पाते
आँखों की सियाही से, छलक जाती है तब कविता।

आहें जब बिलखती हों, ये साँसें जब तड़पती हों
बीते दौर की बातें, जब पलकों से बरसती हों
थोड़ी दूर जाकर के, कदम जब खुद ही रुक जाते
आँखों की सियाही से, छलक जाती है तब कविता।

पलकों को भिंगोती है, जब नींदों में सताती है
बदलते मौसमों में जब हँसाती है रुलाती है
नजर कुछ दूर जाकर जब खयालों में उलझ जाए
आँखों की सियाही से, छलक जाती है तब कविता।

तड़कती धूप में दिल जब बिखरती छाँव को देखा
तड़पते दर्द को देखा बिलखते भाव को देखा
आँचल से अलग हो कर, जो तारा टूट गिर जाते
आँखों की सियाही से, छलक जाती है तब कविता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        02जून, 2023

पैसा ही जब शीश मुकुट

पैसा ही जब शीश मुकुट

पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे
पैसा जिनका शीश मुकुट हो संबंधों को क्या मानेंगे।

जाने कैसी रीत जगत की दुर्बल हरदम हारा है
ताकत जिसके चरण चूमती उसका ही जयकारा है
झूठ साँच चौखट पर टेके, माथ कभी न पछतायेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।

जीते जी सम्मान नहीं की मरने पर मूरत लगवाई
कितनी अर्जी डाले बैठी करी नहीं उसपर सुनवाई
जिसने वक्त को धन से तोला वो अर्जी को क्या  मानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।

चार घड़ी न साथ रहे जो बात जनम की हैं दोहराते
पैसे कहते, मैल हाथ के लेकिन पीछे आते-जाते
जो संबंधों को तोले धन से वो सोचो क्या पहचानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।

पैसा ही है मजहब जिनका मंदिर मस्जिद और शिवालय
जग के रिश्ते नाते सारे उनकी खातिर शून्यालय
धन ही जिनका मूल मंत्र है वो दया धरम क्या मानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       28मई, 2023

क्या पता चाहतें फिर मचलने लगें।

क्या पता चाहतें फिर मचलने लगें।

दो कदम चाँद के साथ चल लें जरा 
क्या पता चाहतें फिर मचलने लगें।

बाद मुद्दत के यादों ने दस्तक दिया
दिन पुराने नयन में चमकने लगे
गात आगोश में साँझ की खो गया
बिन पिये ही कदम ये बहकने लगे
हाथ में ले पियाली जरा प्रेम की
क्या पता चाहतें फिर मचलने लगें।

फिर सुधियों के सावन गगन छा रहे
गीत भूले कभी याद फिर आ रहे
श्रावणी भाव पा गीत सजने लगे
बूँद तन पर गिरी राग बजने लगे
गीत की पंखुरी होंठ पर अब लगा
क्या पता चाहतें फिर मचलने लगें।

लिपट रात से साँझ फिर खो न जाये
सिमट अंक में फिर कहीं सो न जाये
आओ के फिर चाँद ने है पुकारा
समझो जरा तुम भी इसका इशारा
चलो इस रात को हम जरा ओढ़ लें
क्या पता चाहतें फिर मचलने लगे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28मई, 2023

बदल जाती हैं।

बदल जाती हैं।

यादों को बाँध लो चाहे पलकें ये मचल जाती हैं
आहों में असर होगा तो जंज़ीरें पिघल
जाती हैं

कौन कहता है राहें रुक जाती हैं वहाँ तक जाकर
दो कदम साथ चलने से राहें खुद ही बदल जाती हैं

दिल के जज्बातों को कोई क्या रोकेगा भला
एक नजर देखने से आहें भी मचल जाती हैं

कौन कहता है कि किस्मत को बदल सकते नहीं
हौसला दिल में हो तो तकदीरें भी बदल जाती हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26मई, 2023

चलो आज मिला जाए।

चलो आज मिला जाए। 

बीते हुए लम्हों के यादों को जिला जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।

पलकों पे सजे कितने सपने क्यूँ उतरते हैं
कभी पास रहे लम्हे क्यूँ जाने बिखरते हैं
बिखरे हुए सपनों के यादों को जिला जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।

हालात ने हम सबको कितना ही सताया है
हैं मोड़ चले कितने ही फिर आज मिलाया है
जो रुकी हुई राहें हैं फिर आज चला जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।

दुनिया की निगाहों से चलो दूर कहीं चल दें
अपने गुनाहों को एक दूजे से हम कह दें
जो दर्द छुपा रक्खा चलो आज सुना जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

अधूरे शब्द।

अधूरे शब्द।  

शब्द अधूरे छपे पृष्ठ पर उनको पूर्ण करूँ कैसे।

गंगा सा पावन मन लेकर
अंजुलि निर्मल जल भर कर
पग-पग पर चरण पखारा है
कितना कुछ जो वारा है
चाह मगर जो रुकी हृदय की उनका मूल गहूँ कैसे
शब्द अधूरे छपे पृष्ठ पर उनको पूर्ण करूँ कैसे।

आहत जितनी हुई चाहतें
ढूंढ रहा वही राहतें
सारे तर्क अधूरे क्यूँ हैं
आहों के फेरे क्यूँ हैं
आहों के इस चक्रव्यूह से ख़ुद को दूर करूँ कैसे
शब्द अधूरे छपे पृष्ठ पर उनको पूर्ण करूँ कैसे।

क्यूँ व्याकरण के सारे अक्षर 
पृष्ठ पलटते पलट गये
जो भी उत्तर लिखा कहीं भी
जाने क्यूँ सब उलट गये
फिर से इस कोरे कागज पर नव अक्षर अब गढूं कैसे
शब्द अधूरे छपे पृष्ठ पर उनको पूर्ण करूँ कैसे।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

सूर्य किरणें गा रही हैं।

सूर्य किरणें गा रही हैं।  

बादलों की ओट से सूर्य किरणें गा रही हैं।

रात की गुमनामियों से भोर की पहली किरण
कर रही है देख अर्पित अंक में पुष्पित सुमन
चीर कर नभ घनेरे रोशनी मुस्का रही है
बादलों की ओट से सूर्य किरणें गा रही हैं।

ओस की बूँदें धरा पर रश्मियों को भा रहीं शीत के अहसास में वो सौम्य बनकर छा रहीं
भोर का पाकर निमंत्रण ओस मुस्का रही है
बादलों की ओट से सूर्य किरणें गा रही हैं।

दूर कर आलस्य सारे चेतना संचार हो
नींद से जागी सुबह पर रात का ना भार हो
छाँव आँचल के सिमट धूप भी मुस्का रही है
बादलों की ओट से सूर्य किरणें गा रही हैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19मई, 2023

मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

आ रही है चाँदनी यूँ रात के आँचल लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

रूप खुद श्रृंगार कर के रात ओढ़े सो रही है 
चाँदनी की रश्मियां खुद रात का मुख धो रही हैं 
जुगनुओं ने मौन मन से रात का आँचल सजाया 
रूपसी के तन लिपट कर प्रेम ने मन को लुभाया।

नेह के सुन्दर इशारे अंक यूँ आए सिमट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

आज बादल ने धरा पर नेह का मधुमास भेजा 
आज तपती कामनाओं को मृदुल अहसास भेजा 
स्वयं सपनों ने सजाये नैन में सुन्दर सितारे 
डूब कर मधु चाँदनी में आस का बादल पुकारे।

रंग रँगे हैं नैन खुद यूँ कोर पलकों के लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

ढल न जाये रात यूँ ही मौन हो कर चाहतों  में 
खोजती ही रह न जाये रात खुद को राहतों में 
भींगती इस रात में फिर जाग तारे भींग जाएँ 
सो रहे हों जो सितारे जाग कर फिर रीझ जाएं।

मुक्त कर दे यूँ हृदय को आज साँसों से लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद 
        18मई, 2023


खोजती संभावनाएं।

खोजती संभावनाएं।  

रात की गुमनामियों में ख्वाब पलकों पर टहलते
टिमटिमाती रोशनी में खोजते संभावनाएं।

पास अपने है यहाँ क्या और क्यूँ इतरा रहे हैं
ओढ़ कर आडंबरों को स्वयं को बिसरा रहे हैं
कौन जाने भाव मन के कोर पर आकर मचलते
कह रहे हैं बूँद में कुछ दंश की संकीर्णताएं।

रोज मदिरा नाचती है ओढ़ मन के आवरण को
और नंगा कर रही हैं सभ्यता को, आचरण को
वासना के दलदलों में पीढ़ियों के मन बहकते
कोरे पृष्ठ पर वक्त के लिख रहे हैं अन्यथायें।

चुप्पियाँ जब तक रहेंगी नाग तन लिपटे रहेंगे
अनगिनत आहें गगन के पृष्ठ पर लिखते रहेंगे
शब्द खुद ही पँक्तियों में राख बन जायें दहकते
आवाज को इतना उठाओ हों सजग वर्जनाएं।

संकल्प ले यूँ अंजुरी मौन हो प्रण सो न जाये
भीड़ या तन्हाइयों में वो बिखर कर खो न जाये
रह न जायें फिर ऋचाएँ छंद की खातिर तड़पते
लेखनी फिर हाथ में आ हों सृजक नवकल्पनाएँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        17मई, 2023





क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

है दर्द से जाने क्या नाता
बिन जोड़े ही जुड़ जाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

इक राह चुनी थी चलने को
जाने वो क्यूँ कर दूर हुई
क्यूँ राहें इतनी मुश्किल थीं
क्यूँ मंजिल थक कर चूर हुई
क्या हुआ कदम क्यूँ राहों में
चलने से पहले थमने लगे
क्यूँ चलना इतना मुश्किल था
चलने से पहले थकने लगे
अब खुद से है शायद अनबन
या खुद को अब भरमाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

ना जाने कैसी भूल हुई
खुशियों ने रस्ता मोड़ लिया
जो दर्द छुपा कर रक्खा था
उसने ही दिल को तोड़ दिया
खुशियों से क्या करूँ शिकायत
जब दर्द भी अपना हो न सका
पलकों से क्या शिकवा बोलो
जब रातों को खुद सो न सका
थी शायद नींदों से अनबन
पलकों से कह, बहलाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

अब तक जो भी दर्द मिला था
वो दर्द भी मुझको प्यारा था
इस रंग बदलती दुनिया में
एक वो ही था जो हमारा था
अब तो शायद खुद पर ही
मुझको मेरा अधिकार नहीं
वक्त से थी शायद ठनगन
अब इससे भी इनकार नहीं
दूर कहीं जब तारा देखूँ
जाने क्यूँ कर खो जाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        14मई, 2023


अब और तुम पर क्या लिखूँ।

अब और तुम पर क्या लिखूँ।  

हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

देख कर मादक नयन में, नेह का नूतन निमंत्रण,
छूट जाता है हृदय से, स्वयं ही मेरा नियंत्रण,
देख नयनों की चपलता, ओर अपने खींचती है,
और अधरों की तरलता, मौन मन को भींचती है,

भावनाओं का नगर तुम, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

प्राण हो इन पंक्तियों की, तुम गीत का संसार हो,
प्रिय मौन स्मृति तंत्र में तुम, नव प्राण का संचार हो,
तुम ही हृदय के पृष्ठ पर, पल-पल बदलती करवटें,
ध्यान बरबस खींचती हैं, प्रिय भाल की ये सिलवटें,

रूप का मधुमास हो तुम, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

शोर की गहराइयों में, पुण्यता का मौन चिंतन,
तुम हृदय के पृष्ठ अंकित, भावना का तीव्र मंथन,
तुम भोर की मृदु रश्मियाँ, अनुभूति तुम अभिसार की,
अब क्या नियंत्रण मैं लिखूँ, जब पंक्ति हो मनुहार की,

छंद का पर्याय तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12मई, 2023
        

अब व्यर्थ नहीं बह जाने दो।

अब व्यर्थ नहीं बह जाने दो।  

कुछ आँसू में दर्द छुपा है, कुछ आँसू में प्रीत छुपी
कुछ आँसू में हार छिपी है, कुछ आँसू में जीत छुपी
ये आँसू हैं अनमोल बहुत, पलकों में रह जाने दो
अब व्यर्थ नहीं बह जाने दो।

कुछ यादों की बदली लाते, कुछ ले आते फरियादें
कुछ में अपनेपन के मेले, कहीं पराई आघातें
इनके भावों को मत रोको, भावों को कह जाने दो
अब व्यर्थ नहीं बह जाने दो।

मुस्कानों के बीच पला जो, दर्द यहाँ अनमोल बहुत 
पल भर में सब कह डाले ये, कौन कहे अनबोल बहुत 
आँसू अंतस का दर्पण है, अंतस को बहलाने दो
अब व्यर्थ नहीं बह जाने दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       12मई, 2023

सपनों के गीत।

सपनों के गीत।  

फिर सपनों के गीत लिखें, हम।

कुसमित मन के भाव जहाँ हो
मुकुलित कानन छाँव जहाँ हो
शब्द-शब्द में हो अनुबन्धन
परमानंद नेह अनुरंजन
गुंजित नभ नव गीत लिखें, हम
फिर सपनों के गीत लिखें, हम।

पल-पल नव संयोग जहाँ हो
रास रंग नव योग जहाँ हो
शुद्ध प्रेम हो भोग नहीं हो
मन में कोई रोग नहीं हो
योग-सुयोग मन मीत लिखें, हम
फिर सपनों के गीत लिखें, हम।

जहाँ नेह के गीत प्रवाहित
हो पोर-पोर स्नेह समाहित
जहाँ हृदय खुद मादक प्याला
देख जिसे झूमे मतवाला
मादक मन की प्रीत लिखें, हम
फिर सपनों के गीत लिखें, हम।  

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       11मई, 2023

कहीं कोई गाँव तो होगा।

कहीं कोई गाँव तो होगा। 

सुलगती जिंदगी है ये कहीं पर ठाँव तो होगा
बड़ी वीरान है बस्ती कहीं पर गाँव तो होगा

बहुत है धूप राहों में, तपिश है और अंगारे
जलेंगे रास्ते कब तक कहीं पर दाँव तो होगा

नहीं ढलते यहाँ पर शब्द गीतों में फकत यूँ ही 
कहीं कोई  इशारा है कहीं  पर काँव तो होगा

न पूछो क्यूँ उमड़ते हैं दिलों में दर्द के बादल
कँटीली याद के घुँघरू सँजोये पाँव तो होगा

यूँ भटकेंगे कहाँ तक ये हमारे रास्ते बोलो
कहीं पर तो मिलेंगे ये कहीं पर गाँव तो होगा

 ©✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद
        10मई, 2023


गाँव-भूली बिसरी यादें

गाँव-भूली बिसरी यादें।

आज लिखने चले गीत जब गाँव पर
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

वो जो बचपन मेरा था वहीं रह गया
जो था अल्हड़ मेरा वो कहीं बह गया
साथ बस रह गयी याद जो थी सुहानी
भूली बिसरी वो यादें वो कितनी कहानी
यादों के पृष्ठ पलटे जो इक पल यहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

दूर तालाब तक जाती पगडंडियाँ
राह में खेलती कितनी अठखेलियाँ
पेड़ की छाँव में धूप का मुस्कुराना
और पुरवाई का हौले से गुदगुदाना
बाग में चिड़ियों से बातें करते वहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

खेतों में रोपती धान की क्यारियाँ
आँखों में सपनों की कितनी तैयारियाँ
साँझ चौपालों पे गीत की रागिनी
बोली ऐसी शहद की घुली चाशनी
गीत में गूँजते मन के गाने जहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

उम्र के छोर पर जिंदगी की लड़ी
तक रही राह, उम्र हाथ ले कर छड़ी
आज भी होंठ पर लोरियों की लड़ी
राहों के संग-संग जिसकी नजरें मुड़ीं
आज ठोकर लगी राह में जब यहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

शहरों की रोशनी में कहीं खो गए
तारे खुद रात को ओढ़ कर सो गए
दिन ढला कब यहाँ, रात कब क्या पता
मंजिले कब मुसाफिर हुईं क्या पता
हैं चलीं राह खुद मंजिलें जब यहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

वक्त के साथ बढ़ती ये तन्हाईयाँ
दूर होने लगी आज परछाइयाँ
जा रहा है शहर-गाँव, खुद छोड़कर
रिश्ते नाते सभी से यहाँ तोड़कर
चार पैसों की चाहत में आये यहाँ
तब जाना के क्या छोड़ आये वहाँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08मई, 2023

गो माता की पुकार।

गो माता की पुकार।  

बिलख रही हैं गाय हमारी किसको व्यथा सुनायें
कदम-कदम पर दर्द मिल रहा किसके द्वारे जायें
बिलख रही हैं.....।।

सबको दूध पिला कर जिसने बचपन से है पाला
उसके ही जीवन को जग ने संकट में क्यूँ डाला
आज स्वार्थी हुआ जगत क्या कोई नहीं सहारा
आवाज नहीं जाती कानों तक कितनी बार पुकारा
बदल रही है रीत जगत की किसको व्यथा सुनायें
कदम-कदम पर दर्द मिल रहा किसके द्वारे जायें।

तड़प रहे वृंदावन गोकुल तड़प रहे हैं ग्वाला
जिसने जग को प्रेम सिखाया उसका वध कर डाला
वेद, पुराण, गीता ग्रन्थों ने जिसको पग-पग पूजा
त्याग, तपस्या, दया, धर्म है और नहीं कोई दूजा
बिलख रही है गली-गली अब किसको व्यथा सुनाये
कदम-कदम पर दर्द मिल रहा किसके द्वारे जायें।

पाप-पुण्य में होड़ मची है ये कैसी विपदा आयी
कदम-कदम पर बूचड़खाने है ये कैसी कहो कमाई
तनिक स्वाद की खातिर जग में नैतिकता को तोड़ा
क्यूँ स्वार्थ में अंधा हुआ जगत क्यूँ माँ का आँचल छोड़ा
माँ का आँचल तार-तार है अब किसको व्यथा सुनाये
कदम-कदम पर दर्द मिल रहा किसके द्वारे जायें।

आज नहीं दिखता इस युग में गो माँ का रखवाला
कहाँ बसे हो आन मिलो है मुरलीधर गोपाला
टूटा जो विश्वास यहाँ तो सृष्टी मिट जाएगी
मानवता दर-दर भटकेगी राह न मिल पाएगी
इतना दो वरदान सभी को मानव धर्म निभायें
कदम-कदम पर दर्द मिल रहा किसके द्वारे जायें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08मई, 2023

जाने न देंगे।

जाने न देंगे।  

जो जागे हैं फिर नींद अब आने न देंगे
तुम्हें फिर यहाँ से अब जाने न देंगे

चलेंगे तुम्हारे कदम दर कदम हम
कदम के निशाँ अब मिटाने न देंगे

गायेंगे फिर गीत मन के मिलन के
उसे फिर कभी अब भुलाने न देंगे

बाद बरसों के जागे हैं लम्हें सुहाने
किसी को उन्हें अब सुलाने न देंगे

रूठना और मनाना बहुत हो चुका है
फिर रूठने के कोई अब बहाने न देंगे

मिटेंगी दिवारें सभी मैं और तुम की
फिर नई कोई दिवारें अब बनाने देंगे

नहीं कोई दौलत यहाँ तुमसे बढ़कर
इसे हाथ से देव अब जाने न देंगे

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        07मई, 2023

सुनना यदि जरूरी था, तो कहना भी जरूरी था।

सुनना यदि जरूरी था, तो कहना भी जरूरी था।

शब्द कितने ही झरे थे आँख से उस दिन वहाँ पर
और कानों ने सुने थे बात कितनी ही वहाँ पर
कोई मजबूरी तो होगी शब्द अधरों पर रुके 
और सपने बूँद बनकर के कोर पे आकर रुके
बूँद जो उस दिन रुके वहाँ बहना भी जरूरी था
सुनना यदि जरूरी था, तो कहना भी जरूरी था।

अब भार कितनी बात का ये मन यहाँ ढोता कहो
अब और कितनी चोट दिल से मन यहाँ कहता सहो
कोई हद होती जहाँ पर दर्द को विश्राम मिलता
और बिखरे उन पलों को कुछ वहाँ आराम मिलता
नासूर कहीं बन न जाये बहना भी जरूरी था
सुनना यदि जरूरी था, तो कहना भी जरूरी था।

वही मैं था वही तुम थे वही थी राहतें दिल की
अधूरी थी गुजारिश वो अधूरी चाहतें दिल की
कभी भटके कभी पहुँचे कभी थी मंजिलें झूठी
कभी थी आहटें झूठी कभी थी राहतें झूठी
हुई मंजिल मुसाफिर जब भटकना भी जरूरी था
सुनना यदि जरूरी था, तो कहना भी जरूरी था।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06मई, 2023

और कब तक पथ निहारा जाएगा।

और कब तक पथ निहारा जाएगा।  

सूनापन कब तक तके सांध्यतारा
और कब तक पथ निहारा जाएगा।

निकल पड़ी जब पीर मन को चीर कर
कौन इसको रोक फिर तब पायेगा
और विकलता जब रुकेगी तीर पर
कौन इसके सामने फिर जाएगा।

इन रास्तों पे शूल हैं बिखरे बहुत
यादों पर भी धूल हैं बिखरे बहुत
आएगी जब पीर सबको चीरकर
हाथ बोलो क्या यहाँ रह जायेगा।

मौन यहाँ मन कहो कब तक रहेगा
शून्य हो पंथ कहो कब तक तकेगा
जब मिलेंगे शब्द विकल इस पीर को
नैन में सारा गगन आ जायेगा।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        04मई, 2023





पिता।

पिता।  

दूर खड़ा हो
कोई भाव छुपा रहा है
वो पिता है, साहब
भीतर ही मुस्कुरा रहा है।

कितनी ही डिग्रियां बटोरी है
तब ये मंजिल पाई है
वो पिता है, साहब
डिग्रियों से ऊंची 
उसकी लड़ाई है।

दो वक्त की रोटी
कपड़ा और मकान
पिता होना 
कहाँ इतना आसान।

जिसके आगे 
सारा जमाना झुकता है
वो खुदा भी
पिता के आगे झुकता है।

हर रोज नए सपने बुनता है
बच्चों की खुशियों के लिए
किसी और की कहाँ सुनता है।

जरा सी गलती पर 
आँख दिखाता है
वो पिता है, साहब
डाँटता जब है
फिर पछताता है।

बच्चों की आँखों
में आँसू देख नहीं पाता
कौन कहता है कि
उसे पढ़ना नहीं आता।

अपने काँधों पर
कितनी ही जिम्मेदारियों का
बोझा ढोता है
वो पिता है, साहब
सेहत की कहाँ सोचता है।

त्यौहारों में सबके लिए
कुछ न कुछ लाता है
पर उसी पुराने कुरते में
खुद एडजस्ट कर जाता है।

एक माँगो
तो हजार देता है
वो पिता है, साहब
पल में चाँद-तारे 
उतार देता है।

लेखनी में इतनी स्याही नहीं
के लिख सकूँ पिता क्या है
बस इतना ही जान पाया
इस तपती धूप में
पिता एक सुनहरी छाया है।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03मई, 2023

जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।

जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।

कुछ बात अधूरी रही हृदय की चाह रही पर कह न सके
बीती उन सारी बातों की टेर यहॉं ढूँढा करती है
कुछ तस्वीर अधूरी मन की चाहा पर पूरा कर न सके
तस्वीरों पर रुकी तूलिका  मुड़-मुड़ कर देखा करती है
जब सारे अनुबन्ध यहीं तक रंग भला मैं क्या-क्या भरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।

कितनी बातें नई पुरानी रुके अधर सब कहते-कहते
सपने सारे बने मुसाफिर पलकों को यूँ तकते-तकते
रुकी राह सारी तब जाकर मिला नहीं जब कहीं इशारा
कहता किससे बात हृदय की काँधों का जब नहीं सहारा
थे आगे प्रतिबंध वहाँ जब खालीपन को किससे भरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।

अब तो हर सूनापन मेरे अंतस को प्यारा लगता है
चाहे कितना भरा जगत हो बरबस बंजारा लगता है
अब तो सारी बातें मन को बस सुनी सुनाई लगती है 
अब तो मन की पीर हृदय को सब पीर पराई लगती है
परछाईं से आबंध यहीं तक दोष छाँह पर क्या धरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        03मई, 2023

पास नहीं क्यूँ आते हो?

पास नहीं क्यूँ आते हो?

कितने तारे नील गगन में जोह रहे बाँह पसारे
क्यूँ यूँ इनको उलझाते हो पास नहीं क्यूँ आते हो?

निस दिन बाहों को पुलकित कर
साँसों में पुष्पादित स्वर 
धवल दीप्त कर इस जीवन को
यूँ ही तुम बहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

पुन अंतर्मन को झंकृत कर 
विरह वेदना के स्वर भर
भावों को अस्फुट स्वर देकर
अंतर्मन दहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

शैशव मन के भावों में घुल
मृदु यौवन मधुरस से धुल
साँसों में स्मित मधुमासों का
पोर-पोर छू जाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        30अप्रैल, 2023

अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

एक तिनका आ कहीं से आँख में ऐसे पड़ा
यूँ लगा जैसे हृदय में शब्द आकर के गड़ा
आह फिर निकली हृदय से मौन मन को बींधती
कंठ से फिर आह निकली शून्यता को चीरती
शून्यता में छिपी जाने कितनी वेदनायें
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

हैं छुपे कितने उजाले वक्त की बदलियों में
और कितने खो गए धूम्र बनकर चिमनियों में
पर कहीं अब भी छपे हैं वीथियों पे कुछ निशाँ
देखती हैं मौन आँखें शून्य में वो कहकशाँ
है कहीं अब भी छिपी शून्य में संवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

थी अधूरी बात मन की टूट आँसू गिर गया
बात पूरी कह न पायी धूल में वो मिल गया
पर कपोलों पर छपे रह गये संवाद के पल
मिट न पायी रेख उनकी यूँ चुभे उस रोज पल
मिल गए जो धूल में क्या कहें परिवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2023

आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

जो दूर थे तारे गगन में इन क्षणों में पास हैं
शून्यता के मध्य देखो पल आज कितने खास हैं
आ निशा के इन पलों को सींच दें सौदामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

हैं दूर जो नक्षत्र सारे अंक में भर आज लायें
तोड़ कर निज बंधनों को आज फिर से पास आयें
आ सजायें पंक्तियों को हम मधुर अनुरागिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

गूँजते हैं गीत अब भी सुन तनिक जो थे सुरीले
फैलते हैं भाव मन के सांध्य में होकर रंगीले
आ मिलायें साँस को हम साँस की अनुगामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2023

लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

लेकर द्वार मिलूँगा मैं।  

जब गाने को गीत रहे ना, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

सुंदर है हर फूल यहाँ पर, इस जीवन के उपवन में
सबका मोल चुका पाना कब, संभव होता मधुवन में
लेकिन पुष्पच्छादित मन ले, पल-पल राह तकूँगा मैं
जब उपवन की क्यारी भटके, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

सागर से मिलकर कितनी, नदिया हर पल रही पियासी
खुशियों के सम्मुख रहकर, आहों में जब रहे उदासी
दिल की बात सुने न कोई, संग-संग तब रहूँगा मैं
दिल के घाव तुम्हें सताए, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

इतना भी अनिभिज्ञ नहीं हूँ, मन की बात समझ न पाऊँ
इतना भी अनजान नहीं, चेहरों को मैं पढ़ न पाऊँ
मौन उदासी के भावों को, कह दो यहाँ पढूँगा मैं
जब चेहरे के भाव थकेंगे, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27अप्रैल, 2023

गीत अधूरा रहे न कोई।

गीत अधूरा रहे न कोई।  

प्यासी आँखों में मन का, गीत अधूरा रहे न कोई
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

गरजो-बरसो आज घटा बन, सौ-सौ बिजली बन चमको
अंग-अंग में मादकता की, मोहक छवि बनकर दमको
गूँजो बनकर मधुर तान तुम, मन मेरा बहका जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

सूखी-सूखी धरती सारी, एक बूँद को जोह रही
उमड़-घुमड़ कर श्याम घटायें, मेरे मन को मोह रही
बरसो श्याम घटा बनकर तुम, अंतर्मन नहला जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

दस्तक देती द्वार खड़ी है, मेरे मन के पुरवाई
गीत अधूरे राग बिना है, जाने कैसी निठुराई
मन के गीत सजे अधरों पर, ऐसा राग सुना जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

बादल की जब चाह धरा को, धरती उसे बुलाती है
सागर से मिलने को नदिया, खुद चलकर के आती है
मुरली की मृदु तान छेड़ कर, फिर मधुमास जगा जाओ
बूँद बनो ऋतु पावस की तुम, मन की प्यास बुझा जाओ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27अप्रैल, 2023

हमसफ़र।

हमसफ़र।  

काश उस रोज तुझसे जो न बेखबर होता
तुम्हारे जुल्फ की छाँवों में मेरा बसर होता

मैं लिखता गीत तेरे नैन की हर करगुजारी पर
मिले हम राह ए मंजिल में कभी ऐसा सफर होता

तन्हा है बहुत मुश्किल गुजारा इस जमाने में
कि ऐसा हो जो मेरा है वही तुम्हारा भी घर होता

आया इस ऊँचाई पर तो जाना जिंदगी क्या है
अकेला हूँ बहुत मैं देव कोई हमसफ़र होता

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        26अप्रैल, 2023

ग़ज़ल--सँभल के मिलना।

सँभल के मिलना।  

जुनून-ए-इश्क की दुनिया है जरा सँभल के मिलना तुम
नकाबों में लिपट चेहरे हैं जरा सँभल के मिलना तुम

हिफाजत हो किसी की तो यहाँ नासूर पलता है
बड़े हैं शूल राहों में जरा सँभल के चलना तुम

चेहरों पे नहीं लिखा है किसी के दिल में क्या-क्या है
अगर दिल खोलते हो तो जरा सँभल के खुलना तुम

हजारों ख्वाहिशें माना तुम्हारे दिल में पलती है
गिरे जो ख्वाहिशें राहों में तो फिर खुद सँभलना तुम

कि अब परछाइयाँ भी दूर तक कब साथ देती हैं
राहों में बड़े धोखे हैं जरा सँभल के चलना तुम

वादों का भरोसा क्या यहाँ हर रोज गिरते हैं
जुबाँ पर और दिल में और जरा सँभल के मिलना तुम

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2023

ग़ज़ल-हालात के दर्द।

हालात के दर्द।  

क्या कहूँ के किन-किन हालात से गुजरे हैं
जिंदगी हम तो तेरी हर घात से गुजरे हैं

कुछ ख्वाब ऐसे चुभे हैं मेरी इन आँखों में
जख्म आँखों में लिए बरसात से गुजरे हैं

अब दर्द का क्या कहें क्या ठिकाना था कहाँ था
चुभती आहों औ दर्द के जज्बात से गुजरे हैं

कुछ खता थी या नहीं अब ये मालूम किसे है
बेबसी हम तो तेरी हर बात से गुजरे हैं

तब जाना जिंदगी भी एक खेल है यहाँ पर
कदम-कदम पर जब शह और मात से गुजरे हैं

क्या बताएं देव किस-किस ने सताया है हमें
बात जितनी भी निकली हर बात से गुजरे हैं

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2023

मन की पीर।

मन की पीर।  

एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

सूने नयनों ने कितने ही
यादों के संदेशे भेजे
मन के विह्वल नील गगन ने
कितने ही अंदेशे देखे
लेकिन मन के संदेशों को
चाहा लेकिन कह कब पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

कितनी बार हृदय ने चाहा
मन की पीर लिखे पृष्ठों पर
मन ने कितनी बार उकेरा
आहों के पल को पृष्ठों पर
कुछ थी धुंध हृदय में गहरी
पृष्ठों को मन समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

मन के सारे भाव अधूरे
सब अक्षर-अक्षर हुए अवारा
दूर हुआ है मन दुनिया से
कहूँ किसे है कौन सहारा
उलझे ऐसे भाव हृदय में
चाहा कितना सुलझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

मन की खूँटी पर यादों की
कुछ तो बाकी बची कहानी
जिसकी पीड़ा में घुल-घुलकर
पिघल रही है एक हिमानी
पीड़ा के उस उच्च शिखर का
दर्द हृदय ये समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        22अप्रैल, 2023

शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए।

शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए।  

याद आयी उनकी नयन सजल हो गए
शब्द पन्नों पे उतरे गजल हो गए

बात में कुछ सच्चाई तो होगी वहाँ
यूँ ही नहीं बातें सारी असल हो गए

तेरी यादों ने इतना रुलाया हमें
नैन के कोर सारे विजल हो गए

उनके दर्द ने दर्द को दर्द इतना दिया
कि दर्द के भाव सारे खिजल हो गए

कहीं कुछ तो कमी रह गयी आहों में
के जतन जो थे सारे विफल हो गए

अब कहें देव किससे मन की यहाँ पर
दिल के रिश्ते सभी अब अजल हो गए


विजल- जल विहीन, निर्जल
खिजल- शर्मिंदगी
अजल- मृत्यु

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

नहीं आती।

नहीं आती।  

जाने क्यूँ रात अब नहीं आती
नींद आँखों में अब नहीं आती

कितनी उम्मीद थी घटाओं से
बूँद आँखों में अब नहीं आती

रोज तकता हूँ रात तारों को
फिर वही रात अब नहीं आती

जिसने दिल को कभी लुभाया था
वो सूरत नजर अब नहीं आती

एक गुजारिश थी उनसे मिलने की
क्या ये फरियाद अब नहीं आती

कुछ तो ख्वाहिश अभी अधूरी है
जिंदगी रास अब नहीं आती

यादों से जाने कैसी अनबन है
याद आती थी अब नहीं आती

अपना साया भी कुछ अधूरा है
कल थी परछाईं अब नहीं आती

पहले आती थी देव हँसी यूँ ही
किसी बात पर अब नहीं आती

कैसे रखूँगा मैं खबर उनकी
अपनी भी खबर अब नहीं आती

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        20अप्रैल, 202

कैसे कहो मनाऊँ मैं।

कैसे कहो मनाऊँ मैं। 

जाने कैसी है हलचल
व्यग्र हो रहा मैं पलपल
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं ।।

भाव हृदय में रह रहकर
हलचल नई मचाते हैं
रचता हूँ कुछ और यहाँ
और गीत रच जाते हैं
रूठे शब्दों को बोलो
कैसे आज बुलाऊँ मैँ।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैँ।।

अनजाना भय व्याप्त हुआ
किसने जाने किसे छुआ
संवादों पर ताले हैं
उर के फूटे छाले हैं
बाँध सबर का टूट रहा
जीवन जैसे रूठ रहा
टूट रहे सपनों को फिर
कैसे कहो सजाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।

कदम कदम पर क्रंदन है
मौन हृदय का नंदन है
कितने सपने खोएंगे
पलकें कब तक रोयेंगे
चीखूँ या अरदास करूँ
कैसे और प्रयास करूँ
कैसे दर्द दिखाऊँ मैं
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ में।।

जो विलंब है आने में
तो इतना उपकार करो
जहाँ जहाँ तम गहरा है
वहाँ वहाँ उजियार करो
ऐसा दो वरदान मुझे
गीत नया रच जाऊँ मैं
अँधियारे में दीप जला
मधुर रागिनी गाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।

 ©️✍️अजय कुमार पाण्डेय 
        हैदराबाद

उम्मीद नहीं टूटा करती।।

 उम्मीद नहीं टूटा करती।।

ढीली माना डोर हाथ की आस नहीं टूटा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

माना तेज धूप राहों में दूर-दूर तक छाँव नहीं
मन को थोड़ा चैन मिले ऐसा भी कोई गाँव नहीं
माना छाँव दूर है लेकिन राह नहीं रूठा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

मन पर कितने बोझ भले हों काँधे कब झुक जाते हैं
जिनके सपने उच्च शिखर कब बाधा से घबराते हैं
मन को मन थाह मिले जब चाह नहीं रूठा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता
पलकों के यूँ झुक जाने से सपना नहीं गिरा करता
भले उम्मीदों की राह कठिन साँस नहीं छूटा करती
एक हार से जीवन की उम्मीद नहीं टूटा करती।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        27मई, 2023

गीत को सम्मान।

गीत को सम्मान।  

हो समर्पण प्रेम में जब तब मधुरतम गान बनता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

नैन की जब पुण्य बूँदें इस हृदय की सींचती हैं
प्रेम में अभिभूत होकर जब अधर को भींचती हैं
साँस भी उन्मुक्त होकर जब कह पड़े दिल की लगी
और आहों में हृदय की जब भावनाएं हों जगीं
भावनाओं के समर में नेह को जब मान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

बूँद पलकों से उतरकर जब कपोलें चूमती हैं
नैन से बिछड़ी मगर जब मस्त होकर झूमतीं हैं
जब बहे गीतों के संग आँसुओं की धार घुलकर
और कह दे भावनाओं से हृदय के तार मिलकर
जब नयन से गीत छलके आँसुओं को मान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

लेखनी जब भी मचलकर गीत लिखती कागजों पर
चाँदनी मन की निखरती सुर सजाती बादलों पर
अर्चना के भाव में मन प्रेम को नव धाम देते
मौन गीतों को सफर में इक नया आयाम देते
पाषाण मन के भाव को जब नया भगवान मिलता
तब हृदय में प्रेम पनपे गीत को सम्मान मिलता।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
         हैदराबाद
        19अप्रैल, 2023

रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

उर पीड़ा के मौन अंश जो, नयन कोर में रहते प्रतिपल
जो स्थापित मन के भावों को, चुभते बनकर अभिशापित दल
बूँद नयन से चरण पखारूं, मैं आहों को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

साँसों से साँसों का बंधन, है आह-आह का अनुबन्धन
निज हृदय सृजित स्मित भावों का, हिय पीड़ा से कैसा बंधन
आँसू के दो चार कणों से, मैं तप्त हृदय नहलाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

दुर्बल मन के कुछ सपनों का, जाने कैसा ये चढ़ाव है
बिखरे मोती मनके सारे, कैसा मन का ये दुराव है
बिखरे मनके मोती चुनता, मन ही मन को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

कुछ सपनों के मर जाने से, रिश्तों में कैसी परवशता
एक कोख से जन्मे मन में, कैसी लघुता कैसी गुरुता
अंतर्मन के कोर में बसे, पाषाणों को समझाता हूँ
रोते-रोते मुस्काता हूँ।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        18अप्रैल, 2023

अंतिम मधु प्याला।।

 अंतिम मधु प्याला।।


गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला
तारों का रथ चाँद सारथी, जीवन अपना है मधुशाला।।

कितने द्वार खड़े पीने को, कितने प्याले तोड़ चुके हैं
कितने मदिरालय में रहकर, जीवन मधुघट फोड़ चुके हैं
प्रथम बूँद की कुछ को चाहत, कुछ अंतिम की बाट जोहते
मधु की लाली में नव जीवन, कुछ को प्यासी राह मोहते
कुछ डूबे मधु के सागर में, और बने कुछ जीवन हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

दिल से दूर हुए हैं कितने, जीवन मधु सा जीनेवाले
मदिरालय ने कितने देखे, आते-जाते पीने वाले
कितने पीकर मस्त हुए हैं, कितने डूब गए जीवन में
कितने साकी रूठ गए हैं, डूबे कितने सिन्धु नयन में
जब-जब छलकी प्याली मन की, तब-तब नयन बने ख़ुद हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

कुछ मुस्काये नयनों में घुल, कुछ नयन कोर से ढलक गये
कुछ ने मन को दिया सहारा, अरु कुछ राहों में बहक गये
कुछ राहों में घिरकर भटके, कुछ को भय भ्रम ने आ घेरा
कुछ ने सहज भाव स्वीकारा, जीवन जनम मरण का फेरा
कितने मदिरालय खुद बहके, कितनों ने खुद संशय पाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

कुछ को धूप मिली राहों में, कुछ ने पग-पग पाई छाया
कुछ अभाव में जीवन काटा, कुछ को हाथ मिली बस माया
कुछ बंधन में स्वयं बँधे हैं, कुछ को हालातों ने बांधा
कुछ साधक बन स्वयं सधे हैं, कुछ को अनुपातों ने साधा
कितनी मद की प्याली छलकी, अरु टूटी कितनी मधुशाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

अंतिम बूँद प्रखर कितनी है, समझा किसने काल हलाहल
जिसने कंठ धरा है इसको, पग-पग चलता रहा चलाचल
लेकिन अंतिम बूँद मदिर की, प्यासे मन को भरमाती है
मदिरालय के द्वार पहुँचकर, अंतिम सुख क्या दे पाती है
अंतिम सुख की चाह हृदय में, मधु घट सेज सजाती हाला
गहन सिमटती रात अँधेरी, हाथ लिए अंतिम मधु प्याला।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       15अप्रैल, 2023


आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

उम्र का पहिया निरंतर चल रहा रफ्तार से
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

बीते कितने ही बसंत और कितनी आस है
अतृप्त मन के भाव की और बाकी प्यास है
पल-पल घट रही दूरियाँ उम्र के अनुपात की
और धूमिल हो रही है तेज प्रतिपल गात की
किंतु मन की भावनाएं गीत नूतन गढ़ रही
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

बढ़ रहा दायित्व जब से मौन मन का गान है
उम्र के अनुरोध है ये मत कहो अभिमान है
चल रहे हैं पंथ सारे पर शिथिल चाल माना
अनुभवों की रेख पर है जिंदगी का ताना-बाना
मौन हल्की सी हँसी अब झुर्रियों को ढँक रही
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

लिख दिए ग्रन्थ कितने और कितने लिख रहे
चाहतों के पृष्ठ में जा गीत कितने छिप रहे
दूर कितना भी सवेरा दीप लेकिन जल रहा
मौन एकाकी हृदय के अंक को पर खल रहा
आहटें हल्की समय की रेत बनकर झर रहीं
आयु तन की घट रही पर चाह मन की बढ़ रही।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        11अप्रैल, 2023





इतिहास

इतिहास।  

हो सुलगती आग भीतर,मौन रहना क्या उचित है
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

चल न पाए पंथ पर जो, आज भी पथ जोहते हैं
इक अधूरी आस लेकर, स्वयं का मन टोहते हैं
जो देखते हैं वीथियों पर, स्वप्न के टुकड़े बिखरते
बस देखते हैं वो सफर में, सूर्य को रथ से उतरते
स्वयं बढ़कर हाथ थामो, हो सके अहसास पूरा
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

दूर यदि जाओ कभी तो, पास रखना कुछ निशानी
रिश्तों की डोरी बँधी है, उम्र पर है आनी जानी
बाँध कोई कब सका है, वक्त को पाबंदियों में
और रिश्तों के सफर में, मौन को अभिव्यक्तियों में
कुछ शब्द जो ठहरे अधर पर, कब रहा कोई अछूता
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

लिख दिये हैं ढेर सारी, पर है अभी बाकी कहानी
कुछ सुनी है हमने तुमसे, और कुछ अपनी सुनानी
एक मन में भाव कितने, और कितनी यादें पल रही हैं
आज कह दो स्वयं आकर, देख संध्या ढल रही है
इस सांध्य के स्मित पलों में, ना चाँद रह जाये अधूरा
क्या पता किस पृष्ठ का इतिहास रह जाये अधूरा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10अप्रैल, 2023

राम-नाम सत्य जगत में

राम-नाम सत्य जगत में राम-नाम बस सत्य जगत में और झूठे सब बेपार, ज्ञान ध्यान तप त्याग तपस्या बस ये है भक्ति का सार। तन मन धन सब अर्पित प्रभु क...