जो दूर थे तारे गगन में इन क्षणों में पास हैं
शून्यता के मध्य देखो पल आज कितने खास हैं
आ निशा के इन पलों को सींच दें सौदामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।
हैं दूर जो नक्षत्र सारे अंक में भर आज लायें
तोड़ कर निज बंधनों को आज फिर से पास आयें
आ सजायें पंक्तियों को हम मधुर अनुरागिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।
गूँजते हैं गीत अब भी सुन तनिक जो थे सुरीले
फैलते हैं भाव मन के सांध्य में होकर रंगीले
आ मिलायें साँस को हम साँस की अनुगामिनी से
आ विरह के इन पलों को सींच दें मधुयामिनी से।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28अप्रैल, 2023
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