मैं जानूँ या दिल जाने।
कितनी बातें कितनी यादें, मैं जानूँ या दिल जाने।
नयनों ने कितने पल देखे, यादों के इस मेले में
सपने कितने छलक गये हैं, बूँदों के इस रेले में
पलकों को कैसे समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।
सावन बरसे रैना तरसे, निस दिन इस अँगनाई में
मैं तो पल-पल ढूँढूँ खुद को, अपनी ही परछाईं में
रातों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।
यादों के मेले में जब भी, कभी अकेले होते हैं
भीड़ भरी तन्हाई में भी, छुप-छुप अकसर रोते हैं
यादों को कितना समझाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।
नहीं किसी से रही शिकायत, अब कोई अफसोस नहीं
और नहीं उम्मीद किसी से, अपना ही जब होश नहीं
होश गँवा कर क्या-क्या पाया, मैं जानूँ या दिल जाने
कितनी बातें कितनी यादें....।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
17जून, 2023
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