अब तक कितने गीत लिखे, विरह वेदना प्रेम समर्पण
कुछ में खुद को पाया है, और किया कुछ में सब अर्पण
पर अब गीतों में दिल चाहे, पंक्ति-पंक्ति में प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।
कितने कल्पित भावों से, रहा भ्रमित ये हृदय हमारा
खोज में ढाई अक्षर के, रहा भटकता मारा-मारा
सारे कल्पित भावों के, क्या हार लिखूँ क्या जीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।
दिवस रात का मिलन अनोखा, देख प्रहर भी ठहरा है
दूर क्षितिज पर उम्मीदों का, रंग अभी भी गहरा है
रिमझिम बारिश की बूँदों में, सांध्य पलों की प्रीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।
साँस-साँस के प्रति पृष्ठों पर, दिल चाहे श्रृंगार लिखूँ
छंद-छंद नव रीत सजाकर, मैं जीवन का सार लिखूँ
जीवन के इस पुण्य ग्रन्थ का, दिल चाहे मनमीत लिखूँ
अबके पावस में दिल चाहे, तुम पर कोई गीत लिखूँ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
12जुलाई, 2023
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