मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

आ रही है चाँदनी यूँ रात के आँचल लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

रूप खुद श्रृंगार कर के रात ओढ़े सो रही है 
चाँदनी की रश्मियां खुद रात का मुख धो रही हैं 
जुगनुओं ने मौन मन से रात का आँचल सजाया 
रूपसी के तन लिपट कर प्रेम ने मन को लुभाया।

नेह के सुन्दर इशारे अंक यूँ आए सिमट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

आज बादल ने धरा पर नेह का मधुमास भेजा 
आज तपती कामनाओं को मृदुल अहसास भेजा 
स्वयं सपनों ने सजाये नैन में सुन्दर सितारे 
डूब कर मधु चाँदनी में आस का बादल पुकारे।

रंग रँगे हैं नैन खुद यूँ कोर पलकों के लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

ढल न जाये रात यूँ ही मौन हो कर चाहतों  में 
खोजती ही रह न जाये रात खुद को राहतों में 
भींगती इस रात में फिर जाग तारे भींग जाएँ 
सो रहे हों जो सितारे जाग कर फिर रीझ जाएं।

मुक्त कर दे यूँ हृदय को आज साँसों से लिपट कर 
मुस्कुरा कर के सितारे चाँद से कुछ कह रहे हों।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद 
        18मई, 2023


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