क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।
बिन जोड़े ही जुड़ जाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।
इक राह चुनी थी चलने को
जाने वो क्यूँ कर दूर हुई
क्यूँ राहें इतनी मुश्किल थीं
क्यूँ मंजिल थक कर चूर हुई
क्या हुआ कदम क्यूँ राहों में
चलने से पहले थमने लगे
क्यूँ चलना इतना मुश्किल था
चलने से पहले थकने लगे
अब खुद से है शायद अनबन
या खुद को अब भरमाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।
ना जाने कैसी भूल हुई
खुशियों ने रस्ता मोड़ लिया
जो दर्द छुपा कर रक्खा था
उसने ही दिल को तोड़ दिया
खुशियों से क्या करूँ शिकायत
जब दर्द भी अपना हो न सका
पलकों से क्या शिकवा बोलो
जब रातों को खुद सो न सका
थी शायद नींदों से अनबन
पलकों से कह, बहलाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।
अब तक जो भी दर्द मिला था
वो दर्द भी मुझको प्यारा था
इस रंग बदलती दुनिया में
एक वो ही था जो हमारा था
अब तो शायद खुद पर ही
मुझको मेरा अधिकार नहीं
वक्त से थी शायद ठनगन
अब इससे भी इनकार नहीं
दूर कहीं जब तारा देखूँ
जाने क्यूँ कर खो जाता हूँ
मैं जानूँ या दिल जाने
क्यूँ आँसू में मुस्काता हूँ।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14मई, 2023
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