सब माटी सब धूल।
दोहा
बिना ज्ञान के लेखनी, उतना ही मन भाय।
जैसे अधजल गागरी, पथ में छलकत जाय।।1।।
माता के परित्याग पर, प्रश्न उठाते लोग।
प्रभु की निष्ठा पर यहाँ, दोष लगाते लोग।।2।।
जैसी बुद्धि विवेक है, वैसे प्रश्न उठाय।
जाकी जैसी भावना, वैसा ही फल पाय।।3।।
चौपाई
अपने मन के प्रश्न उठाते, रामायण की कथा सुनाते।।
कहते माता को क्यूँ छोड़ा, क्यूँ कर उनसे नाता तोड़ा।।
रामायण में कमी बताते, प्रभु के मन को कब छू पाते।।
नारीवादी बनते सारे, गर्भ में फिर कन्या क्यूँ मारे।।
खुद नारी ना नारी भावे, औरों पर क्यूँ प्रश्न उठावे।।
राजा का बस धर्म एक है, जन सेवा ही धर्म नेक है।।
ऊंच नीच का भेद न माने, परहित सेवा केवल जाने।।
राजा वही सभी की सुन ले, स्वार्थ छोड़ जन सेवा चुन ले।।
अपना क्या है कौन पराया, जो भी आया नेह लुटाया।।
अपने सुख का त्याग किया है, राज धर्म का मान किया है।।
राजा पर जब प्रश्न उठाया, खुद को ही तब सजा सुनाया।।
जब से त्याग सिया का कीन्हा, अपने प्राण स्वयं हर लीन्हा।।
प्रभु का दुख क्यूँ देख न पाये, अर्ध ज्ञान जब कथा सुनाये।।
राजकीय पद की है गरिमा, अपने मुख से कैसी महिमा।।
साधू, सन्यासी या राजा, श्रेष्ठ वही जिसने सुख त्यागा।।
दोहे
बिन जाने समझे बिना, कहें न कोई बात।
मन ही केवल जानता, नयनों की बरसात।।1।।
मर्यादा प्रभु राम ही, भारत के हैं मूल।
इनके सम्मुख सम्पदा, सब माटी सब धूल।।2।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24जून, 2023
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