कैसा बोलबाला है।
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।
फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट में बिजी है
कहते हैं युवा उनकी लाइफ बहुत निजी है
लाइक, सब्स्क्रिप्शन की भाग दौड़ बड़ी है
जिसे देखो उसी को अब व्यूअर्स की पड़ी है
मोबाइल ने मन पे जाने कैसा डाला ताला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।
ऑनलाइन हुए जबसे ऑफलाइन छूट गया
मिल के जो बना था वो रिश्ता फाइन टूट गया
आई फोन, आई पैड स्टेटस के सिंबल हैं
इनके बिना जाने क्यूँ लाइफ ये सिंगल है
स्टेटस के चक्कर में निकला दिवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।
भाव छूटी, भक्ति छूटी नेह वाली शक्ति छूटी
दया छूटी, दृष्टि छूटी मेल वाली युक्ति छूटी
वेद छूटा, शास्त्र छूटा, गीता और पुराण छूटा
शिक्षा, धरम, संस्कृति पर से अभिमान छूटा
पश्चिम के खुलेपन से मन हुआ मतवाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।
संगी छूटे, साथी छूटे, दादी छूटी, नानी छूटी
दूध भात कटोरी वाली चंदा की कहानी छूटी
गिल्ली छूटी, डंडा छूटा, छुप्पन छुपाई छूटी
छत के बिछौने छूटे, तारों की गिनाई छूटी
चंदा की कटोरी में है दूध-भात अब भी
ढूंढता है चंदा इसे कहाँ खाने वाला है।
मिलना-जुलना कम हुआ रिश्ते सभी गुम हुए
कल तक हम थे कब जाने मैं और तुम हुए
रिश्ते सिमट सभी फोन में ही आ गये हैं
आजकल उजालों की अँधेरे भी भा गये हैं
रातें फिर ढूँढ़ रही कहाँ खोया वो उजाला है
नया-नया शौक पाले कैसा बोलबाला है।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
11जून, 2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें