काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

मेरे अधरों पर रुके हैं शब्द कुछ अब भी अबोले
चाहता है ये हृदय के दिल के सारे राज खोले
जाने क्यूँ असमंजसों में मन मौन होकर रह गया
क्यूँ जाने पीड़ा के पलों का दर्द सारा सह गया
आह के बीते पलों को आ के कोई साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

लग रहा गुजरे पलों ने फिर से है हमको पुकारा
इस पिघलती साँझ का यहाँ कौन है बोलो सहारा
धुंध है या मौन यहाँ जो इन पलों में छा रहा है
ऐसा क्यूँ लगता कहीं पर गीत कोई गा रहा है
काश जब भी गीत गाता कोई मेरा साथ देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

ढल चुकी है सांध्य कितनी, बाकी हैं कुछ उँगलियों पर
पर यूँ लगता स्वप्न बाकी, नाचते हैं पुतलियों पर
अब क्या कहूँ कि इस सफर की सांध्य कैसे ढल रही है
क्या कहूँ श्वासों को रातें क्यूँ अकेली खल रही है
काश कोई रात के गीतों को आकर साज देता
काश कोई द्वार पर आ फिर मुझे आवाज देता।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12जनवरी, 2023

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