ग़ज़ल--सँभल के मिलना।

सँभल के मिलना।  

जुनून-ए-इश्क की दुनिया है जरा सँभल के मिलना तुम
नकाबों में लिपट चेहरे हैं जरा सँभल के मिलना तुम

हिफाजत हो किसी की तो यहाँ नासूर पलता है
बड़े हैं शूल राहों में जरा सँभल के चलना तुम

चेहरों पे नहीं लिखा है किसी के दिल में क्या-क्या है
अगर दिल खोलते हो तो जरा सँभल के खुलना तुम

हजारों ख्वाहिशें माना तुम्हारे दिल में पलती है
गिरे जो ख्वाहिशें राहों में तो फिर खुद सँभलना तुम

कि अब परछाइयाँ भी दूर तक कब साथ देती हैं
राहों में बड़े धोखे हैं जरा सँभल के चलना तुम

वादों का भरोसा क्या यहाँ हर रोज गिरते हैं
जुबाँ पर और दिल में और जरा सँभल के मिलना तुम

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23अप्रैल, 2023

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