देख अनदेखा किये।

देख अनदेखा किये।  

उम्र कल तक गीत लेकर द्वार तक आती रही
और हम उस गीत को ही देख अनदेखा किये।

मिलते रहे हमेशा, रास्ते एक दूसरे से
कहते रहे कहानी, आहें एक दूसरे से
बिछड़े जो रास्ते तो, ये साँसें बिछड़ गयीं सब
आहों के दास्ताँ में, जा कर बिखर गयीं सब
आहें ये दर्द लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस दर्द को भी, देख अनदेखा किये।

गीतों में लिखते आये वो सारी निशानियाँ
अधरों पे आकर छाईं, वो दिल की कहानियाँ
शब्दों ने जाने कितने, मंजर भिंगो दिये हैं
कहने से पहले दिल पे, खंजर चुभो दिये हैं
आहें ये घाव लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस घाव को, भी देख अनदेखा किये।

अब दोष किसको देना, अपना करम है सारा
जिससे बिछड़ गये थे, था शायद धरम हमारा
अब अकेले हैं यहाँ पर, और नहीं है अपना
रह-रह बिछड़ गये हैं, नयनों का देखा सपना
पलकें वो स्वप्न लेकर, कितना पुकारती रहीं
और हम उस स्वप्न को भी, देख अनदेखा किये।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        08जून, 2023




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