मुक्तक
1
महज नजरों का धोखा है इसे कुछ और मत समझो।मुसाफिर हूँ मोहब्बत का मुझे कुछ और मत समझो।
नहीं इसमें खता मेरी है सारा दोष नजरों का,
मैं आशिक हूँ नजारों का मुझे कुछ और मत समझो।
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2
आये थे तेरे पास निभाने के वास्ते।
चले कुछ दूर तक साथ निभाने के वास्ते।
तुमने इसे मजबूरियों का नाम दे दिया,
छोड़ा तुम्हारा साथ निभाने के वास्ते।
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3
ऐसा नहीं कि हमको कोई शौक नहीं है।
रुसवाइयों का दिल में कहीं खौफ नहीं है।
मजबूरियों ने शौक को ऐसा दफन किया,
हरदम यही कहा के हमको शौक नहीं है।
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4
वक्त के सितम भी कितने क्रूर हो गए।
हम ठीक से मिले न थे कि दूर हो गए।
हाथ की लकीरों में कुछ तो कमी रही,
मजबूरियों में उलझे यूँ मजबूर हो गए।
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5
ऐसा नहीं के आँख में मेरे नमी नहीं।
ऐसा नहीं कि अब भी है तुम पर यकीं नहीं।
हाँ, दूर हुआ तुमसे यही दोष है मेरा,
कैसे कहूँ तेरे बिना कोई कमी नहीं।
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6
नहीं भूला अभी तक दिल पुरानी वो मुलाकातें।
अभी तक याद है दिल को सुहानी चाँदनी रातें।
नहीं है बेवफा कोई महज ये खेल किस्मत का,
गिरे जब हाथ से लम्हे न थी कुछ राज की बातें।
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7
ये माना कि हमें इस राह में मिलना जरूरी था।
चले जिस राह हम तुम साथ में चलना जरूरी था।
मगर कुछ बंदिशें थीं, घाव थे दिल मे लगे ऐसे,
दिलों से बंदिशों के घाव का धुलना जरूरी था।
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8
यही चाहत है इस दिल की तुम्हें हर पल निहारूँ मैं।
तुम्हारे गेसुओं के छाँवों में लम्हा गुजारुँ मैं।
नहीं होंगे जुदा तुमसे अब यही वादा हमारा है,
कि अपनी साँस के हर मोड़ पर तुमको ही पुकारूँ मैं।
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9
महफ़िल में यहाँ देखो हजारों लोग आए हैं।
दिल में प्यार, अपनापन भरे सब लोग आए हैं।
अपनी खुशनसीबी है मिले हैं आप सब हमको,
दिलों को जीतने सबके प्यारे लोग आए हैं।
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10
हैं लिखे जो गीत सब तुमको सुनाना चाहता हूँ।
तुम्हारे गीतों को मैं गुनगुनाना चाहता हूँ।
ख्वाहिश है तुम्हारे संग जीने और मरने की,
के मेरे दिल में है क्या-क्या दिखाना चाहता हूँ।
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11
खुशी के साथ में कुछ गम का रहना भी जरूरी है।
किसी से बात अपने दिल की कहना भी जरूरी है।
कहीं ना बोझ बन जाये रुके आँसू इन आँखों में,
पलक के कोर से आँसुओं का बहना भी जरूरी है।
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12
थी जाने कैसी जिद सभी पे भारी पड़ गई।
मजबूरियाँ सभी जिंदगी पे भारी पड़ गईं।
उलझे रहे सब शौक यहाँ मजबूरियों में यूँ,
कि ये जिंदगी भी मौत पे अब भारी पड़ गई।
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13
एक सपना नयन में छुपाए रहे।
बात दिल की लवों पे दबाए रहे।
जब भी सोचा तुम्हें बताऊँ कभी,
दूर होने के डर दिल में छाए रहे।
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14
ज़ख्म जो भी मिले हम सिले ही नहीं।
दाग दिल पर लगे जो धुले ही नहीं।
दिल को मेरे कोई शिकायत नहीं,
बस ये सोचा हम तुम मिले ही नहीं।
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15
साथ रहने का वादा अधूरा रहा।
भावनाओं का सागर अधूरा रहा।
राहों की थी जाने क्या मजबूरियाँ,
जब भी हम तुम मिले कुछ अधूरा रहा।
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16
दूर अब भी वहीं है वो वीरानियाँ।
बैठ गिनता जहाँ अपनी तनहाइयाँ।
लोगों में मैं रहूँ या अकेले कहीं,
ढूँढता हर घड़ी तेरी परछाइयाँ।
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17
न पुष्प लाया हूँ न नजराने लाया हूँ।
गीत की कुछ पंक्तियाँ सुनाने आया हूँ।
बस दिल में आपके जरा जगह बना सकूँ,
भावनाओं को मैं सहलाने आया हूँ।
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18
शूल चुभे पैर में या लहू निकल पड़े।
ताप में झुलसे फफोले अब उबल पड़े।
रोकेंगी क्या मुश्किलें राह की तुम्हें,
हौसला जब जीत का लेकर निकल पड़े।
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19
जो दूर तक चले उसी का साथ चाहिए।
जो हाथ न छोड़े उसी का हाथ चाहिए।
मिलने को मिल जाएंगे कितने सफर में,
जो साथ निभाए उसी का साथ चाहिए।
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20
शब्द-शब्द हैं चुने तब पंक्तियां बनी।
पंक्तियाँ चुनी कहीं तब गीतिका बनी।
गीतिका में भरी जब दिल की भावना,
वही नेह के प्रसार की पत्रिका बनी।
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21
नजराना चाहिए न उपहार चाहिए।
दिल में आपके मुझे बस प्यार चाहिए।
जिंदगी की दौड़ सभी जीत जाएंगे,
मुझको साथ आपका हर बार चाहिए।
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22
आज माना हारा हूँ पर दिल को गम नहीं।
हौसला मेरा हुआ है अब भी कम नहीं।
आज हारा हूँ मगर कल जीत जाएंगे,
अपना भरोसा है ये कोई भरम नहीं।
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23
कुछ पलों का साथ है ये मेरा आपका।
गीतों में जो भाव हैं वो प्यार आपका।
क्या कहूँ क्या-क्या मिला है मुझको आपसे,
सुन रहे हैं मुझको है अहसान आपका।
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24
शिकायतें, हिदायतें सभी सहूलियतें बदल गईं।
इस जिंदगी के दौर की सब हकीकतें बदल गईं।
इंसानियत के मरने का है अब किसको गम यहाँ,
ताकत के इस दौर में सभी नसीहतें बदल गईं।
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25
चेहरों पे सदा सबके तुम मुस्कान खिलाना।
सपनों की लिखावट से सदा घरबार सजाना।
हर पल रहे खुशियाँ सदा दामन में तुम्हारे,
आशीष है बेटी सदा तुम यूँ ही मुस्काना।
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26
देखो मोहब्बत ने नई जीत लिखी है।
मजबूत इरादे ने नई प्रीत लिखी है।
अब लिख रही है भोर आसमान इक नया
सांध्य सितारों ने भी नई रीत लिखी है।
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27
मुश्किल थी यहाँ फिर भी हमने काम है किया।
हर पल तुम्हारे नाम का गुणगान है किया।
तुमने तो बस समझा हमें इक वोट की तरह,
जब चाहा भुनाया हमें और फेंक फिर दिया।
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28
बहुत वीरानियाँ पसरीं कभी कुछ शोर तो होगा
मिरी परछाइयों का भी कभी कुछ दौर तो होगा।
बहुत भटकी हैं राहें ये कितनी ख्वाहिशें लेकर,
मिरी तन्हाइयों का भी कभी कुछ ठौर तो होगा।
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29
नहीं हूँ पास माना मैं मगर थोड़ी सी दूरी है,
के थोड़े फासले रखना यहाँ पर भी जरूरी है।
मैं कैसे भूल सकता हूँ बिताए संग लम्हों के,
समय के साथ चलना है तो दूरी भी जरूरी है।
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30
है माना जेब खाली पर खरीद सकता हूँ,
हो चाहे दाम कुछ भी पर खरीद सकता हूँ।
इस प्रेम से मिली है मुझको दौलतें इतनी,
तुम्हारा दर्द जो भी हो खरीद सकता हूँ।
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31
कल जो कहते थे कि, अब कल से वो नहीं आयेंगे,
फिर से गीतों को मेरे, अब वो न गुनगुनायेंगे।
नहीं शिकवा मुझे उनसे, अब न कोई शिकायत है,
मगर क्यूँ साथ छूटा है, यहाँ कैसे बतायेंगे।
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32
अब कोई रुकावटें मुझको न रोक पायेंगी,
अब कोई भी वेदना मुझको न तड़पाएँगी।
जब से थामा है हमने हाथ राम का अपने,
कोई भी मुश्किलें राहों में अब न आयेंगी।
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34
दूर जाते हो नजर से , तो चले जाओगे,
माना फिर लौट के तुम अब यहॉं न आओगे।
तुम्हारी बेरुखी भी सब कुबूल है मुझको,
मुझे यादों से भला कैसे, पर भुलाओगे।
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