अब और तुम पर क्या लिखूँ।

अब और तुम पर क्या लिखूँ।  

हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

देख कर मादक नयन में, नेह का नूतन निमंत्रण,
छूट जाता है हृदय से, स्वयं ही मेरा नियंत्रण,
देख नयनों की चपलता, ओर अपने खींचती है,
और अधरों की तरलता, मौन मन को भींचती है,

भावनाओं का नगर तुम, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

प्राण हो इन पंक्तियों की, तुम गीत का संसार हो,
प्रिय मौन स्मृति तंत्र में तुम, नव प्राण का संचार हो,
तुम ही हृदय के पृष्ठ पर, पल-पल बदलती करवटें,
ध्यान बरबस खींचती हैं, प्रिय भाल की ये सिलवटें,

रूप का मधुमास हो तुम, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

शोर की गहराइयों में, पुण्यता का मौन चिंतन,
तुम हृदय के पृष्ठ अंकित, भावना का तीव्र मंथन,
तुम भोर की मृदु रश्मियाँ, अनुभूति तुम अभिसार की,
अब क्या नियंत्रण मैं लिखूँ, जब पंक्ति हो मनुहार की,

छंद का पर्याय तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ
हो प्रणय का गीत तुम खुद, अब और तुम पर क्या लिखूँ।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        12मई, 2023
        

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