इतिहास

इतिहास।  

हो सुलगती आग भीतर,मौन रहना क्या उचित है
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

चल न पाए पंथ पर जो, आज भी पथ जोहते हैं
इक अधूरी आस लेकर, स्वयं का मन टोहते हैं
जो देखते हैं वीथियों पर, स्वप्न के टुकड़े बिखरते
बस देखते हैं वो सफर में, सूर्य को रथ से उतरते
स्वयं बढ़कर हाथ थामो, हो सके अहसास पूरा
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

दूर यदि जाओ कभी तो, पास रखना कुछ निशानी
रिश्तों की डोरी बँधी है, उम्र पर है आनी जानी
बाँध कोई कब सका है, वक्त को पाबंदियों में
और रिश्तों के सफर में, मौन को अभिव्यक्तियों में
कुछ शब्द जो ठहरे अधर पर, कब रहा कोई अछूता
क्या पता किस पृष्ठ का, इतिहास रह जाये अधूरा।।

लिख दिये हैं ढेर सारी, पर है अभी बाकी कहानी
कुछ सुनी है हमने तुमसे, और कुछ अपनी सुनानी
एक मन में भाव कितने, और कितनी यादें पल रही हैं
आज कह दो स्वयं आकर, देख संध्या ढल रही है
इस सांध्य के स्मित पलों में, ना चाँद रह जाये अधूरा
क्या पता किस पृष्ठ का इतिहास रह जाये अधूरा।।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        10अप्रैल, 2023

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