कैसे कहो मनाऊँ मैं।
जाने कैसी है हलचल
व्यग्र हो रहा मैं पलपल
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं ।।
भाव हृदय में रह रहकर
हलचल नई मचाते हैं
रचता हूँ कुछ और यहाँ
और गीत रच जाते हैं
रूठे शब्दों को बोलो
कैसे आज बुलाऊँ मैँ।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैँ।।
अनजाना भय व्याप्त हुआ
किसने जाने किसे छुआ
संवादों पर ताले हैं
उर के फूटे छाले हैं
बाँध सबर का टूट रहा
जीवन जैसे रूठ रहा
टूट रहे सपनों को फिर
कैसे कहो सजाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।
कदम कदम पर क्रंदन है
मौन हृदय का नंदन है
कितने सपने खोएंगे
पलकें कब तक रोयेंगे
चीखूँ या अरदास करूँ
कैसे और प्रयास करूँ
कैसे दर्द दिखाऊँ मैं
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ में।।
जो विलंब है आने में
तो इतना उपकार करो
जहाँ जहाँ तम गहरा है
वहाँ वहाँ उजियार करो
ऐसा दो वरदान मुझे
गीत नया रच जाऊँ मैं
अँधियारे में दीप जला
मधुर रागिनी गाऊँ मैं।
किसको व्यथा सुनाऊँ मैं
कैसे कहो मनाऊँ मैं।।
©️✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
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