पैसा ही जब शीश मुकुट
पैसा जिनका शीश मुकुट हो संबंधों को क्या मानेंगे।
जाने कैसी रीत जगत की दुर्बल हरदम हारा है
ताकत जिसके चरण चूमती उसका ही जयकारा है
झूठ साँच चौखट पर टेके, माथ कभी न पछतायेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।
जीते जी सम्मान नहीं की मरने पर मूरत लगवाई
कितनी अर्जी डाले बैठी करी नहीं उसपर सुनवाई
जिसने वक्त को धन से तोला वो अर्जी को क्या मानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।
चार घड़ी न साथ रहे जो बात जनम की हैं दोहराते
पैसे कहते, मैल हाथ के लेकिन पीछे आते-जाते
जो संबंधों को तोले धन से वो सोचो क्या पहचानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।
पैसा ही है मजहब जिनका मंदिर मस्जिद और शिवालय
जग के रिश्ते नाते सारे उनकी खातिर शून्यालय
धन ही जिनका मूल मंत्र है वो दया धरम क्या मानेंगे
पैसों की पहचान जिन्हें बस वो रिश्तों को क्या जानेंगे।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28मई, 2023
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