जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।
कुछ बात अधूरी रही हृदय की चाह रही पर कह न सके
बीती उन सारी बातों की टेर यहॉं ढूँढा करती है
कुछ तस्वीर अधूरी मन की चाहा पर पूरा कर न सके
तस्वीरों पर रुकी तूलिका मुड़-मुड़ कर देखा करती है
जब सारे अनुबन्ध यहीं तक रंग भला मैं क्या-क्या भरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।
कितनी बातें नई पुरानी रुके अधर सब कहते-कहते
सपने सारे बने मुसाफिर पलकों को यूँ तकते-तकते
रुकी राह सारी तब जाकर मिला नहीं जब कहीं इशारा
कहता किससे बात हृदय की काँधों का जब नहीं सहारा
थे आगे प्रतिबंध वहाँ जब खालीपन को किससे भरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।
अब तो हर सूनापन मेरे अंतस को प्यारा लगता है
चाहे कितना भरा जगत हो बरबस बंजारा लगता है
अब तो सारी बातें मन को बस सुनी सुनाई लगती है
अब तो मन की पीर हृदय को सब पीर पराई लगती है
परछाईं से आबंध यहीं तक दोष छाँह पर क्या धरता
जब था तुमसे संबन्ध यहीं तक और भला मैं क्या कहता।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
03मई, 2023
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