कोई बहाना बता दो

कोई बहाना बता दो

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

नन्हें पैरों के नीचे खुला आसमान
हर कदम यूँ लगे ज्यूँ नया हो विहान
हर घड़ी पलकों पे दृश्य नूतन सजे
भाव की पालकी नित्य नूतन लगे
नैन में दृश्य फिर से वही लौट आए
खोया हुआ वो खजाना बता दो।

न खबर न फिकर थी दुनिया जहाँ की
क्या है अपना-पराया फिकर ही कहाँ थी
जो मिला प्यार से मन उसी का हुआ
थपकियाँ नेह की मन का आँगन छुआ
वही थपकियाँ पलकों पे लौट आएं
ऐसा हमें फिर ठिकाना बता दो।

रिश्तों की डोर को थामकर उँगलियाँ
उड़ती रहतीं मगन प्यार की तितलियाँ
गुड़ की भेली बताशों की वो चाशनी
चाँदनी रात में ज्यूँ घुली रोशनी
रिश्तों को बाँधने फिर वहीं लौट आएं
फिर से रिश्तों को मन से निभाना बता दो।

कहाँ थे कहाँ आ गया अपना जीवन
दूर लगता है जाने क्यूँ मन का ये उपवन
रोटी, कपड़ों की जद्दोजहद ये बड़ी है
मुश्किलें लग रही जिंदगी से बड़ी हैं
खोई मुस्कान अधरों पे फिर लौट आये
दोस्ती की वो भुला तराना सुना दो।

फिर से बचपन मेरा लौट आये
ऐसा कोई तो बहाना बता दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        23जुलाई, 2023

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...