नई शुरुआत
आ फिर शुरू करें वहीं से हम अपनी जिंदगी
इक लम्हा था गिरा जो कभी अपने हाथ से
छूटा था अपना हाथ जहां पे अपने हाथ से
आ फिर मिलें वहीं पे जहाँ बिखरी जिंदगी
जिस मोड़....
आये थे कितने लोग यहाँ कितने चल दिये
कुछ ने लुटाया प्यार यहाँ कुछ ने गम दिये
रिश्तों की कशमकश में घुटी अपनी जिंदगी
जिस मोड़....
अब खुद के मन से जाने क्यूँ बिछोह हुआ है
अब कैसे कह दूँ खुद से खुद को क्षोभ हुआ है
देख अपनी जिल्द में सिमटती अपनी जिंदगी
जिस मोड़.....
कोने में अब भी दिल के मगर आस बाकी है
उखड़ी हुई है माना मगर कुछ साँस बाकी है
उम्मीद के सिरे में कहीं है बँधी अपनी जिंदगी
जिस मोड़....
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25जुलाई, 2023
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