लेकर द्वार मिलूँगा मैं।
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।
सुंदर है हर फूल यहाँ पर, इस जीवन के उपवन में
सबका मोल चुका पाना कब, संभव होता मधुवन में
लेकिन पुष्पच्छादित मन ले, पल-पल राह तकूँगा मैं
जब उपवन की क्यारी भटके, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।
सागर से मिलकर कितनी, नदिया हर पल रही पियासी
खुशियों के सम्मुख रहकर, आहों में जब रहे उदासी
दिल की बात सुने न कोई, संग-संग तब रहूँगा मैं
दिल के घाव तुम्हें सताए, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।
इतना भी अनिभिज्ञ नहीं हूँ, मन की बात समझ न पाऊँ
इतना भी अनजान नहीं, चेहरों को मैं पढ़ न पाऊँ
मौन उदासी के भावों को, कह दो यहाँ पढूँगा मैं
जब चेहरे के भाव थकेंगे, याद मुझे तब कर लेना
टूटी-फूटी चंद पंक्तियाँ, लेकर द्वार मिलूँगा मैं।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27अप्रैल, 2023
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