मन की पीर।
मन की पीर समझ न पाया।।
सूने नयनों ने कितने ही
यादों के संदेशे भेजे
मन के विह्वल नील गगन ने
कितने ही अंदेशे देखे
लेकिन मन के संदेशों को
चाहा लेकिन कह कब पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।
कितनी बार हृदय ने चाहा
मन की पीर लिखे पृष्ठों पर
मन ने कितनी बार उकेरा
आहों के पल को पृष्ठों पर
कुछ थी धुंध हृदय में गहरी
पृष्ठों को मन समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।
मन के सारे भाव अधूरे
सब अक्षर-अक्षर हुए अवारा
दूर हुआ है मन दुनिया से
कहूँ किसे है कौन सहारा
उलझे ऐसे भाव हृदय में
चाहा कितना सुलझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।
मन की खूँटी पर यादों की
कुछ तो बाकी बची कहानी
जिसकी पीड़ा में घुल-घुलकर
पिघल रही है एक हिमानी
पीड़ा के उस उच्च शिखर का
दर्द हृदय ये समझ न पाया
एक कसक सी रही हृदय में
मन की पीर समझ न पाया।।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
22अप्रैल, 2023
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