अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

एक तिनका आ कहीं से आँख में ऐसे पड़ा
यूँ लगा जैसे हृदय में शब्द आकर के गड़ा
आह फिर निकली हृदय से मौन मन को बींधती
कंठ से फिर आह निकली शून्यता को चीरती
शून्यता में छिपी जाने कितनी वेदनायें
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

हैं छुपे कितने उजाले वक्त की बदलियों में
और कितने खो गए धूम्र बनकर चिमनियों में
पर कहीं अब भी छपे हैं वीथियों पे कुछ निशाँ
देखती हैं मौन आँखें शून्य में वो कहकशाँ
है कहीं अब भी छिपी शून्य में संवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

थी अधूरी बात मन की टूट आँसू गिर गया
बात पूरी कह न पायी धूल में वो मिल गया
पर कपोलों पर छपे रह गये संवाद के पल
मिट न पायी रेख उनकी यूँ चुभे उस रोज पल
मिल गए जो धूल में क्या कहें परिवेदनाएं
अश्रु बूँदों में छिपी जाने कितनी भावनायें।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        28अप्रैल, 2023

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