थी पहचानी गलियाँ लेकिन कुछ अनुमान नहीं पाये।
पल-पल भेष बदलते देखा क्या जाने क्या अनजाने,
अपनी ही परछाईं को भी हम पहचान नहीं पाये।
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रात-रात भर जागीं पलकें क्या जाने कब सोई हैं।
दिन को क्या मालूम यहाँ पर रातें कितना रोई हैं।
अपनी ही परछाईं पर जब अपना कोई जोर नहीं,
नहीं किसी से शिकवा हमको नहीं शिकायत कोई है।
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क्या बतलायें तुमको हमने क्या खोया क्या पाया है।
दर्द मिले या आँसू हमने हँसकर सब अपनाया है।
लेकिन इस किस्मत में शायद जलना कुछ तो बाकी था,
जब भी हँसना चाहा हमको खुशियों ने ठुकराया है।
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इक पलड़े पर रिश्ते ठहरे इक पलड़े पर सपने थे।
इक पलड़े पर खुद की खुशियाँ इक पलड़े पर अपने थे।
ऐसा द्वंद हुआ पलड़ों में सपने सारे टूट गये,
क्या बतलाऊँ पलड़ों को जो सपने टूटे अपने थे।
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बदला-बदला दौर यहाँ है पहले से हालात नहीं।
बाद तिरे कितने आये पर पहले से जज्बात नहीं।
देखी हमने दुनिया सारी देखे कितने सावन भी,
लेकिन तुम बिन इस मौसम में पहले वाली बात नहीं।
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माना कदम थके हैं लेकिन जल्दी कदम बढ़ाऊँगा।
क्षण भर को फिसला हूँ लेकिन जल्द खड़ा हो जाऊंगा।
मेरे गिरने से मत सोचो हमने सब कुछ हार दिया,
खुद से अपना वादा है मैं जल्दी मंजिल पाऊँगा।
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कहा किसी ने सुना किसी ने सच तो कोसों दूर रहा।
जिनको केवल सत्य पसंद था क्यूँ झूठ उन्हें मंजूर रहा।
जो कहते थे साथ चलेंगे चाहे कितनी बाधा हो,
चार कदम भी चल न पाये रिश्ता क्यूँ मजबूर रहा।
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बातों-बातों में समझाना अच्छा लगता है।
हँसकर बालों को सुलझाना अच्छा लगता है।
अकसर खो जाता हूँ गहरी नीली आँखों में,
तेरा आँखों में उलझाना अच्छा लगता है।
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