हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो

यूँ तो मन में भावनाओं का बहा निर्झर हमेशा
पर क्या जानूँ क्यूँ रुके स्वर कंठ तक आकर हमेशा
भाव मेरे छू के अपने भाव का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

ये उँगलियाँ इन अक्षरों को छू सकें मचलीं हमेशा
गीतों की ये पंक्तियाँ मृदु स्पर्श को भटकीं हमेशा
छू के अपने आधरों से जिंदगी की आस दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

द्वार अधरों के रुकी हैं मन की सारी अर्चनाएं
चाहकर भी कह सके ना मन की सारी भावनाएं
अपने भावों से मिलाकर साँस का अहसास दे दो
हैं अबोले शब्द मेरे तुम इन्हें आवाज दे दो।

©✍️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        19जुलाई, 2023


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

श्री भरत व माता कैकेई संवाद

श्री भरत व माता कैकेई संवाद देख अवध की सूनी धरती मन आशंका को भाँप गया।। अनहोनी कुछ हुई वहाँ पर ये सोच  कलेजा काँप गया।।1।। जिस गली गुजरते भर...