और कब तक पथ निहारा जाएगा।
और कब तक पथ निहारा जाएगा।
निकल पड़ी जब पीर मन को चीर कर
कौन इसको रोक फिर तब पायेगा
और विकलता जब रुकेगी तीर पर
कौन इसके सामने फिर जाएगा।
इन रास्तों पे शूल हैं बिखरे बहुत
यादों पर भी धूल हैं बिखरे बहुत
आएगी जब पीर सबको चीरकर
हाथ बोलो क्या यहाँ रह जायेगा।
मौन यहाँ मन कहो कब तक रहेगा
शून्य हो पंथ कहो कब तक तकेगा
जब मिलेंगे शब्द विकल इस पीर को
नैन में सारा गगन आ जायेगा।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
04मई, 2023
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