पास नहीं क्यूँ आते हो?
क्यूँ यूँ इनको उलझाते हो पास नहीं क्यूँ आते हो?
निस दिन बाहों को पुलकित कर
साँसों में पुष्पादित स्वर
धवल दीप्त कर इस जीवन को
यूँ ही तुम बहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?
पुन अंतर्मन को झंकृत कर
विरह वेदना के स्वर भर
भावों को अस्फुट स्वर देकर
अंतर्मन दहलाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?
शैशव मन के भावों में घुल
मृदु यौवन मधुरस से धुल
साँसों में स्मित मधुमासों का
पोर-पोर छू जाते हो, पास नहीं क्यूँ आते हो?
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
30अप्रैल, 2023
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