चलो आज मिला जाए।
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।
पलकों पे सजे कितने सपने क्यूँ उतरते हैं
कभी पास रहे लम्हे क्यूँ जाने बिखरते हैं
बिखरे हुए सपनों के यादों को जिला जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।
हालात ने हम सबको कितना ही सताया है
हैं मोड़ चले कितने ही फिर आज मिलाया है
जो रुकी हुई राहें हैं फिर आज चला जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।
दुनिया की निगाहों से चलो दूर कहीं चल दें
अपने गुनाहों को एक दूजे से हम कह दें
जो दर्द छुपा रक्खा चलो आज सुना जायें
बहुत दूर रहे अब तक चलो आज मिला जाए।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
27मई, 2023
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