है विदित इतना सभी को जो किया वो ही भरेगा
भाग्य का लेखा मिटाना कब यहाँ संभव रहेगा
जानते हैं सब यहाँ पर है कहीं कुछ तो बकाया
पुण्य के इस खेल में जो कुछ बचा वो साथ आया
रेख जब इतना लिखा था फिर विकल जज्बात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।
इस जिंदगी की राह में कितने उठे कितने गिरे
कुछ तो सँभल कर चल दिये कुछ मंजिलें तकते रहे
ताकती है राह अब भी कौन जो अवरोध तोड़े
दूर होती मंजिलों के पास जाकर राह जोड़े
जब नहीं कोई सहारा फिर तड़पती राह क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।
आज जो है पास अपने कौन जाने कल रहेगा
दर्द जो जिसको मिला है वो यहाँ अपना सहेगा
क्या पता कब सांध्य ढलकर राह अपनी चल पड़ेगी
पृष्ठ में इतिहास के छप सांध्य की बातें कहेगी
सांध्य का मन पढ़ न पाया फिर बिलखती रात क्यूँ है
आज फिर इतना बता दो ये सिसकती रात क्यूँ है।
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
15जून, 2023
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