हमसफ़र।
तुम्हारे जुल्फ की छाँवों में मेरा बसर होता
मैं लिखता गीत तेरे नैन की हर करगुजारी पर
मिले हम राह ए मंजिल में कभी ऐसा सफर होता
तन्हा है बहुत मुश्किल गुजारा इस जमाने में
कि ऐसा हो जो मेरा है वही तुम्हारा भी घर होता
आया इस ऊँचाई पर तो जाना जिंदगी क्या है
अकेला हूँ बहुत मैं देव कोई हमसफ़र होता
©✍️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26अप्रैल, 2023
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