नन्हीं का प्रश्न।

बात कहने की नहीं है।

सूरज आता होगा।

अनायास।

तन्हाई।

उपहार।

इच्छाओं का आकाश।

ज़िंदगी- दुश्मन या सहेली।

दिल ने कुछ कहा।

खिलता उपवन देखा है।

दिल तुम्हारा हुआ है।

छठी माई के गीत।

तुम्हारी याद।

मैं चमन का फूल हूँ।

सम्मान की खातिर।

जीवन गीत सुनाऊँ।

दीपावली पर मुक्तक।

पंचदीप दीपावली का।

प्रणय निवेदन।

कर्मयोग।

राष्ट्र प्रथम।

मैं चला हूँ।

वेदनाओं का समर।

जीवन जीना सीख लिया।

कविताओं का सम्मान।

मनमीत।

पुकार।

कशमकश।

नदी और समंदर का संवाद।

आफताब हो जाऊं।

नीलकंठ बनना होगा।
नीलकंठ बनना होगा।
बहुत किया मधुपान अभी तक
विष तुझको भी पीना होगा
मुश्किल हो ये जीवन कितना
हंसकर इसको जीना होगा।
माना तुमने रसपान किया
अबतक भरपूर जवानी का
माना तू प्रतीक बना रहा
अगणित प्रेम कहानी का।
मगर नए इन हालातों को
तुझको आज समझना होगा।
बहुत किया मधुपान अभी तक
विष तुझको भी पीना होगा।।
इतना कब आसान रहा है
जीवन का मरम समझ पाना
पाप-पुण्य की सीमाओं को
इतना आसान समझ जाना।
पाप-पुण्य की गहराई को
फिर से आज समझना होगा।
बहुत किया मधुपान अभी तक
विष तुझको भी पीना होगा।।
जीवन भर मधुपान किया पर
स्वाद कभी भी समझ न पाया
विष की एक घूंट पीते ही
मधु का मरम समझ में आया।
जीवन की सब कटुताओं पे
पैबंद लगा सीना होगा।
बहुत किया मधुपान अभी तक
विष तुझको भी पीना होगा।।
जीवन की ये सच्चाई है
विष-मधु दोनों साथ मिले
एक हाथ ने थामा मधु को
औ दूजे में विष लिए चले।
कुछ भी मुश्किल नहीं रहेगा
बस नीलकंठ बनना होगा।
बहुत किया मधुपान अभी तक
विष तुझको भी पीना होगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
29अक्टूबर,2020

पाप-पुण्य।

पुकार।

मजदूर की इच्छा।

बदलाव।

कुछ मालूम नहीं।

माँ का दरबार।

विजयादशमी- आवाहन।
विजयादशमी- आवाहन।
आओ फिर कण कण में देखो पूण्य बेला खो रही
ढल रही है दीप्ति सारी धवल किरण है खो रही।
आज दिनकर भी धरा पर शांत है अब हो रहा
चांदनी का नेह शीतल जाने कैसे खो रहा।
प्रभु राम क्या तुमको हमारी याद अब आती नहीं
या हमारी प्रार्थना अब तुमतक पहुंच पाती नहीं।
हो गयी क्या भूल हमसे जो धरा को भूल गए
या यहां के त्रास में वो अहसास सारे भूल गए।
है नहीं अब और कोई ना ही कोई आस है
अंधड़ों का दौर दिखता, न दिख रहा प्रभात है।
आज हर मोड़ पे सीतायें कितनी विलख रहीं
उनके हृदय की वेदना आंखों से है छलक रही।
आ भी जाओ अब प्रभु एक तुमसे आस है
छोड़ तुम सकते नहीं हमको यही विश्वास है।
वेदना जब जब सतायी याद तुम आये प्रभु
अंधकार जब भी बढ़ा, प्रकाश तुम लाये प्रभु।
ये ना सोचो राष्ट्र तुमको भूल सकता है कभी
आज जो जीवन मिला है वो आपका ही है प्रभु।
अपने ही तो कहा था आप आओगे वहां
धर्म पर जहां चोट होगी आप जाओगे वहां।
आपके आने में प्रभु अभी और कितनी देर है
दुर्भाग्य है कैसा यहां या वक्त का ये फेर है।
दर्द में सब जी रहे हैं संजीवनी बस आप हो
इस देह रूपी पंचपात्र की आचमनी आप हो।
आज मानव ज्ञान, गुण, सम्मान सारा खो रहा
ऐसा लगता सत्य का अपमान है अब हो रहा।
आज कैसा वक्त है और कैसी आयी ये घड़ी
जिस तरफ भी देखिए निज स्वार्थ की सबको पड़ी।
ऐसे इन हालात में सब सम्मान सारे खो रहे
आपने जो भी बनाया प्रतिमान सारे खो रहे।
जो आ नहीं सकते प्रभु तो हमको ऐसी शक्ति दो
सम्मान फैले बस मनुज का हमको ऐसी भक्ति दो।
है यही विनती हमारी अब इसे स्वीकार करो
अवतरण हो ज्ञान का सबका प्रभु उद्धार हो।
धर्म की स्थापना हो, प्रेम हो कण कण यहां
ज्ञान का विस्तार हो धाम बन जाये जहां।।
✍️©अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
25अक्टूबर,2020

इक कसक।
इक कसक।
जो गुनगुनाया ना गया
वो राग बन गया हूँ मैं।
जल के भी जो ना बुझी
वो आग बन गया हूँ मैं।।
जिधर भी देखो धुंध का
इक आवरण लिपटा हुआ
दर्द भी नासूर बनकर
अब मौन है, चिपटा हुआ।
अपने ही इस देह में
वनवास बन गया हूँ मैं।
जल के भी जो ना बुझी
वो आग बन गया हूँ मैं।।
सूर्य से पहले सफर में
हर बार मैं तो चल पड़ा
साथ ना आया कोई
था देर तक फिर भी खड़ा।
जिंदगी में इंतज़ार की
पहचान बन गया हूँ मैं।
जल के भी जो ना बुझी
वो आग बन गया हूँ मैं।।
जज्बात की रौ में बह
फिर मौन जब कुछ कह उठा
रिश्ते कुछ ऐसे बुझे
बस थोड़ा सा धुंआ उठा।
बच गए जज्बातों की
राख बन रह गया हूँ मैं।
जल के भी जो ना बुझी
वो आग बन गया हूँ मैं।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
24अक्टूबर,2020

विश्वास नहीं खोना।

दहेज-एक अभिशाप।

यूँ ही पाया तो क्या पाया।

तुम आकार बने।

फिर सोचना होगा।

देश।

आज कहना होगा।

आभास तुम्हारा होता है।

माँ तेरे दर पर आया हूँ।

वोट की ताकत।

मन होना नहीं उदास यहां।

मेरा तो इतिहास बना।
मेरा तो इतिहास बना।
व्यथा लिखा जब जब पन्नों पर
इक नूतन अहसास लिखा।
मिली कहानी औरों को, पर
मेरा तो इतिहास बना।।
जीवन अपना मैंने खोया
पाप-पुण्य का बोझा ढोया
जीवन के आंगन में मैंने
पाया वैसा, जैसा बोया।
पाप पुण्य की गठरी लादे
मैंने बस अहसास लिखा।
मिली कहानी औरों को, पर
मेरा तो इतिहास बना।।
सबकी इच्छाओं की खातिर
अश्रु आचमन बहुत किया
आहुति देकर अपना जीवन
अमृत संग-संग गरल पिया।
तपकर जीवन की बेदी पर
मैंने इक विश्वास बुना।
मिली कहानी औरों को, पर
मेरा तो इतिहास बना।।
तोड़ चुका बंधन अब सारे
अहसानों का क्षोभ नहीं
ना ही कोई चाहत बाकी
और मुझे कोई लोभ नहीं।
जीवन के इस मौन सफर में
मैंने अपना मान लिखा।
मिली कहानी औरों को, पर
मेरा तो इतिहास बना।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14अक्टूबर,2020

फैली हों अपनी राहें।
फैली हों अपनी राहें।
चलो चलें उस ओर जहां तक
फैली हों अपनी राहें
चलो चलें हम आज वहां तक
फैलाकर अपनी बाहें।
चंद पलों के जीवन सारा
अवसादों में ना तोलो
मिलो आज तुम सबसे खुलकर
दिल की सारी बातें बोलो।
जब नेपथ्य में नहीं, कुछ भी
फिर क्यूँ आज झुकी निगाहें।
चलो चलें उस ओर जहां तक
फैली हों अपनी राहें।।
सीमित संसाधन हैं अपने
माना सब कुछ पास नहीं
मगर हौसलों की पाँखी है
थकने का अहसास नहीं।
लिए हौसले आज चलें तो
निकलेंगी नूतन राहें।
चलो चलें उस ओर जहां तक
फैली हों अपनी राहें।।
जीवन सारा खिल जाएगा
सपना भी सब मिल जाएगा
हँसकर जब इक बार उठेगा
उपवन सारा खिल जाएगा।
सपनीली इस दुनिया की
तब होंगी तेरी ओर निगाहें।
चलो चलें उस ओर जहां तक
फैली हों अपनी राहें।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
14अक्टूबर,2020

इतना यकीं करो अपने पर।

गीतों में मैं गाता हूँ।

कैसे सुनाऊं कोई गीत तुमको।

दिख रहा प्रभात है।

अंबर में अब भी लाली है।

फिर तुम कैसे पाओगे।

राष्ट्रनीति के भाव जगाओ।

चैन।

स्थिर बनकर के रहना है।

विकल मन।

चुप को हथियार बना।

जागो हे भारत।

मन तो चातक ठहरा।

इंतजार-आखिर कब तक।

धैर्य व संयम।

नव निर्माण का स्वप्न।

तुझको ही प्यार करूं।

सुहाने तराने सुनाओ।

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