वोट की ताकत।
नैतिकता की बातें छोड़ो
काम अगर होता चुपके से
और किसी का दिल ना तोड़ो।
मेजों के नीचे से देखो
आते जाते कितने सारे
कोई करे इशारा छुप कर
और आंख कोई धीरे से मारे।
बिना वजन रखे यहां अब
कौन किसी को पूछेगा
गलती से जिसने प्रश्न किया
वो आफिस आफिस खेलेगा।
भूख प्यास पर बैठक सारी
पांच सितारा होती है
बैठक का सारा खर्चा
जनता बेचारी ढोती है।
कर भरता कोई और यहां
मजा और कोई लेता है
खूब लुटाया लोकतंत्र जो
ज्ञान वही अब देता है।
त्याग तपस्या से देखो वो
जन गण को राह दिखाते हैं
रोटी चाहे नसीब में ना हो
पर सब्जबाग दिखलाते हैं।
लकुटि कमरिया ओढे दादा
फिर पीछे पीछे जाते हैं
घंटे भर हैं साथ घूमते
वादों का चाबुक खाते हैं।
वादों का चाबुक सह सहकर
कितने सावन बीत गए
खुद की कुर्सी की खातिर
हमरी भी खटिया लूट गए।
लोकतंत्र के बागीचे में
रंग रंग के फूल खिले
भारत के कोने कोने से
जनता के सेवक खूब मिले।
जनता की सेवा करने में
कितनों ने है महल बनाये
विकास हुआ भले धीरे से
साहब तो पर दौड़ लगाये।
चुनाव की जब घंटी बजती
भांति भांति के वादे लाते
कहीं मुफ्त की रबड़ी बँटती
और कहीं सपने दिखलाते।
वेद पुराण सभी कहते हैं
जीवन सारा अनित्या है
पद, प्रतिष्ठा, सत्ता, वैभव
लोभ- मोह सब मिथ्या है।
लोकतंत्र में बीमारी का
काका का नुस्खा नोट करो
अपने वोटों की ताकत से
अनैतिकता पर चोट करो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16अक्टूबर,2020
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