तुम्हें पाकर के पन्नों में आबताब हो जाऊं।
चाहत और नहीं कोई मुझे फिर इस ज़माने से
यही कि तुमसे मिल जाऊं औ आफताब हो जाऊं।
तुम पर ही समर्पित है मेरी सांसें मेरी धड़कन
तुम्हारा जो इशारा हो मैं महताब हो जाऊं।
चाहा है औ गाया है मैंने तुमको गजलों में
तुम्हारा साथ मिल जाये मैं आबाद हो जाऊं।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
02नवंबर,202
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