अनायास।

            अनायास।   

अनायास नहीं आया मैं पास तुम्हारे
इसमें तुम्हारी भी तो मर्जी रही होगी।
आखिर कब तलक जिंदगी यूँ कटती अकेले
शायद तुम्हारी भी तो अर्जी रही होगी।।

जो कहोगे तुम तो फिर मैं चला जाऊंगा
और वापस तेरी गलियों में न आऊंगा
एक बार खुद से ही तुम पूछ लेना जरा
कहीं तिरी ख्वाहिश अधूरी तो नहीं होगी।

यूँ तो हरदम एक खुली किताब थी जिंदगी
पन्ना पन्ना सजी एक गुलाब थी जिंदगी
था दोष किसका तेरा, या कहूँ के मेरा
काश इसे कभी तो शिद्दत से पढ़ी होती।।

अब आईना देख के मुस्कुरा लेता हूँ
कभी अनकहा सा गीत गुनगुना लेता हूँ
फिर भी हरपल यही एक खयाल रहता है
अनायास ही कोई तो पुकारेगा कहीं।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
       हैदराबाद
       25नवंबर, 2020



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