पुकार।
नारी को सम्मान मिला
ना जाने फिर भी क्यूँ इनको
हर युग में अपमान मिला।
तब नारी को आजादी थी
वो अपना आकाश चुनें
अपने उम्मीदों की खातिर
खुद अपना विश्वास चुनें।
फिर क्यूँ कदम कदम पर उनके
पैरों में इतनी बेड़ी है
पग पग पर अपमान यहां क्यूँ
राहों में कैसी मेंड़ी है।
उन पर अत्याचारों से
आकाश नहीं क्यूँ फट जाता
धरती क्यूँ खामोश पड़ी
फिर सीना क्यूँ ना फट जाता।
सीता माता की खातिर
धरती ने प्रतिकार किया
आज मगर सीताओं पर
कुंठाओं ने वार किया।
पुतले रावण के जलते हैं
हर बरस यहां चौराहों पे
पर नहीं यहां सुरक्षित नारी
क्यूँ चौकों चौराहों पे।
कहीं चली है गोली देखो
टूट रही कहीं मर्यादा है
कभी सुलगती दरवाजों में
औ चीख यहां पर ज्यादा है।
नैतिकता क्या भीष्म बन चुकी
क्या अब भी दिल नहीं पिघलता
सैरंध्री के अपमानों पर
कान्हा का मन नहीं मचलता।
आखिर कब तक अपमानों का
बोझा संस्कृतियां ढोएंगी
कितने दिन तक और अभी
ये धरती माता रोएंगी।
अब तो चेतो दुनिया वालों
वरना ऐसा दिन आएगा
रोयेगी जब सृष्टि सारी
चैन नहीं फिर मिल पायेगा।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
28अक्टूबर,2020
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