देश।
जल थल नभ की सीमाओं से
कभी देश नहीं बना करता
नदियों से सागर तक केवल
यहां देश नहीं चला करता।
देश नहीं होता है केवल
राजमार्ग से गांवों तक
देश नहीं बनता है केवल
अट्टालिकाओं की छाँवों तक।
देश नहीं सिमटा है केवल
सरहद की सीमाओं तक
देश नहीं सजता है केवल
समझौतों औ सुविधाओं तक।
देश महज कोई पार्क नहीं
जहां सभी घूमा करते हैं
ये हरगिज कोई मंच नहीं
जो गलगौज किया करते हैं।
देश नहीं बस गांव, नगर
ना संसद और ना ये सड़क
देश नहीं फूलों की क्यारी
ना आयोगों की अलमारी।
देश हृदय की भावभंगिमा
प्रेम प्यार सब पलते हैं
ये वो सुंदर पथ है जिसपर
सब मिलकर के चलते हैं।
ये भावों की अभिव्यक्ति है
मजबूत इरादों की बस्ती है
थामे दामन उम्मीदों का
पल पल बस खुशियाँ हँसती हैं।
जहां धर्म जाति का भेद नहीं
है भाषा का मतभेद नहीं
जहां सत्य विजयी है हरपल
संबंधों में विच्छेद नहीं।
ऐसे भारत का सपना अब
हर आंखों में भरना है
दुनिया मे परचम लहराए
ऐसा भारत गढ़ना है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
19अक्टूबर,2020
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