मैं चमन का फूल हूँ।
चमन के फूल ने कुछ आज है मुझसे कहा
रोशनी हो या अँधेरा मैं सदा खिलता रहा
देख ले संसार मुझको मैं धरा का हार हूँ
और तेरी चाहतों का मैं यहां श्रृंगार हूँ।
ना कोई भेद मुझको हर कोई स्वीकार है
रास्तों के शूल जो हैं सारे मेरे यार हैं
कैसे फिर मैं भूल जाऊँ राह ये मैंने गढ़ी
औ कैसे मैं भूल जाऊँ जिंदगी से प्यार है।।
आओ फिर इस रास्ते को प्रीत से रोशन करें
तेरे मेरे बीच एक दीप फिर रोशन करें
औ चलें उस छोर तक खुशबू जहाँ से आ रही
और नूतन रीत से सारा जहाँ रोशन करें।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
16नवंबर,2020
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