बदलाव।
कैसी ये आँधी चली कैसा अब ये दौर है
जिस तरफ भी देखिए बस शोर ही शोर है।
हर तरफ धोखाधड़ी या बाहुबल का जोर है
क्षितिज अब दिखता नहीं, दिखता न कोई छोर है।
हर तरफ आरोप औ चालाकियाँ है दिख रहे
क्यूँ ये लगता काल भी नादानियाँ हैं लिख रहे।
कदम कदम पे चोट है लहर लहर में घाव है
दरख्तों की भीड़, पर मिलती न कोई छांव है।
हर दिलों में आज क्यूँ बारूद जैसा पल रहा
इंसान क्यूँ इंसानियत के वजूद को छल रहा।
पद, प्रतिष्ठा, मान का संज्ञान छूटा जा रहा
लग रहा जैसे कोई स्वाभिमान लूटा जा रहा।
लोभ, मोह, स्वार्थ का अब बोलबाला हो रहा
सत्यकाम, सत्य का अकेले झोला ढो रहा।
संवाद का आपस में लगता अब न कोई मोल है
हर तरफ अवसाद दिखता और दिखता झोल है।
हे कलम कुछ ऐसा लिख बदलाव फिर से आ सके
डूबती कश्ती को जो फिर से किनारे ला सके।
हर दिलों में प्रेम पनपे, हर किसी का मान हो
सद्भाव के पुष्प महके, राष्ट्र का सम्मान हो।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
26अक्टूबर,2020
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