मनमीत।

          मनमीत।  

तुमको मनमीत बनाने को
मैने नवगीत सजाया है
मैंने गीतों में छंदों में
बस तुमको ही पाया है।

है खिला-खिला जीवन अपना
तुम जबसे इसमें आन बसे
सांसों की हर सरगम में
बस तेरे ही अरमान बसे।

तुझसे शुरू हुआ ये जीवन
अब तुझपे ही खत्म करूं
आये जाए कोई मौसम
एक बस मैं तुझको ही जियूँ।

तुमसे ही है चाँद सितारे
तुमसे जीवन की बगिया
तुम ही धरती तुम ही अंबर
तुमसे हैं मेरी खुशियाँ।

जाना जीवन मधुरिम कितना
जबसे तुमसे मेल हुआ
सच कहता हूँ मिलकर तुमसे
जीवन ये परिपूर्ण हुआ।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
        06नवंबर,2020





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