अंबर में अब भी लाली है।
बोलो कैसे मैं रात कहूँ
अंबर में अब भी लाली है
ये गोधूली बेला है
रात कहां अभि काली है।।
अंबर की ड्योढ़ी पर जब भी
चंदा दस्तक देता है
सूरज की मद्धम किरणों से
शीतल प्रकाश वो लेता है।
दोनों की आंखमिचौली की
दुनिया ये मतवाली है,
बोलो कैसे मैं रात कहूँ
अंबर में अब भी लाली है।।
रात दिवस का सफर घना है
हिय संबंधों में यहां सना है
मिल ना पाए भले कहीं पर
गोधूली में प्रेम बना है।
संबंधों की इस बेला में
जब तक फैली लाली है,
बोलो कैसे मैं रात कहूँ
अंबर में अब भी लाली है।।
कहीं तड़प बाकी है अब भी
उम्मीदें दीवानी हैं
ठनी प्रतीक्षा मिलने की है
राहें भी दीवानी हैं।
छोड़ प्रतीक्षा कैसे चल दूं
बाकी अभी दिवाली है,
बोलो कैसे मैं रात कहूँ
अंबर में अब भी लाली है।।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
10अक्टूबर,2020
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