तन्हाई।

        तन्हाई।    

मेरा सच भले ही तुझे मंजूर नहीं, पर
तेरे झूठ ने तो हर बार तौबा की है।।

कैसे कह दूँ के मेरी कोई खता नहीं 
तुझे चाहना ही जब मेरी खता हो गयी।।

मैंने तो फ़िज़ाओं में महक तेरी ढूंढी
न था मालूम फ़िज़ाओं में जहर भी होंगे।।

अब तो डरता हूँ मैं अपनी तन्हाई से 
कहीं तेरा नाम जुबाँ पे न आ जाये।।

जख्म तूने जो दिया वो तो भर जाएगा
मगर दिल पे लगी जो उसे भुलाऊँ कैसे।।

तुम यूँ ही चले जाते तो गम नहीं होता
नम आंखों ने तेरी बात बहुत कह डाली।।

जिस बात की खातिर तुमने मुझे छोड़ा है
काश मेरी मजबूरी कभी समझा होता।।

चलो अच्छा है के तुमने मुझे छोड़ दिया
वर्ना कुछ इल्जाम तेरे सर पे भी होता।।

अब यादों से कोई भी गिला नहीं मुझको
अब तो यादें हैं मैं हूँ औ तन्हाई है।।

✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
        हैदराबाद
       25नवंबर,2020

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